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श्री सरस्वती चालीसा - Shri Saraswati Chalisa

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माता सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा गया है। सरस्वती जी को वाग्देवी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सरस्वती जी को श्वेत वर्ण अत्यधिक प्रिय है। श्वेत वर्ण सादगी का परिचायक होता है। कहा जाता है श्री कृष्ण जी ने सर्वप्रथम सरस्वती जी की आराधना की थी। सरस्वती जी की पूजा साधना में चालीसा का विशेष महत्त्व है। जो कि इस प्रकार है। श्री सरस्वती चालीसा  ॥दोहा॥ जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि। बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥ पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु। दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥ ॥चालीसा॥ जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥ जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी॥ रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता॥ जग में पाप बुद्धि जब होती।तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥ तब ही मातु का निज अवतारी।पाप हीन करती महतारी॥ वाल्मीकिजी थे हत्यारा।तव प्रसाद जानै संसारा॥ रामचरित जो रचे बनाई।आदि कवि की पदवी पाई॥ कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥ तुलसी सूर आदि विद्वाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥