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श्री गायत्री चालीसा - Shri Gayatri Chalisa

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माता गायत्री शक्ति, ज्ञान, पवित्रता तथा सदाचार का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि गायत्री मां की आराधना करने से जीवन में सूख-समृद्धि, दया-भाव, आदर-भाव आदि की विभूति होती हैं। माता गायत्री की पूजा में निम्न चालीसा का भी विशेष प्रयोग किया जाता है। श्री गायत्री चालीसा ॥दोहा॥ ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड। शान्ति कान्ति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखण्ड॥ जगत जननी मङ्गल करनि गायत्री सुखधाम। प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम॥ ॥चौपाई॥ भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी। गायत्री नित कलिमल दहनी॥ अक्षर चौविस परम पुनीता। इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता॥ शाश्वत सतोगुणी सत रूपा। सत्य सनातन सुधा अनूपा॥ हंसारूढ सिताम्बर धारी। स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-बिहारी॥ पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला। शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला॥ ध्यान धरत पुलकित हित होई। सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई॥ कामधेनु तुम सुर तरु छाया। निराकार की अद्भुत माया॥ तुम्हरी शरण गहै जो कोई। तरै सकल संकट सों सोई॥ सरस्वती लक्ष्मी तुम काली। दिपै तुम्हारी ज्योति निराली॥ तुम्हरी महिमा पार न पावैं। जो

श्री सरस्वती चालीसा - Shri Saraswati Chalisa

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माता सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा गया है। सरस्वती जी को वाग्देवी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सरस्वती जी को श्वेत वर्ण अत्यधिक प्रिय है। श्वेत वर्ण सादगी का परिचायक होता है। कहा जाता है श्री कृष्ण जी ने सर्वप्रथम सरस्वती जी की आराधना की थी। सरस्वती जी की पूजा साधना में चालीसा का विशेष महत्त्व है। जो कि इस प्रकार है। श्री सरस्वती चालीसा  ॥दोहा॥ जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि। बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥ पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु। दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥ ॥चालीसा॥ जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥ जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी॥ रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता॥ जग में पाप बुद्धि जब होती।तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥ तब ही मातु का निज अवतारी।पाप हीन करती महतारी॥ वाल्मीकिजी थे हत्यारा।तव प्रसाद जानै संसारा॥ रामचरित जो रचे बनाई।आदि कवि की पदवी पाई॥ कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥ तुलसी सूर आदि विद्वाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥

श्री अन्नपूर्णा देवी कि आरती (Shri Annapurna Devi Aarti)

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श्री अन्नपूर्णा देवी कि आरती     बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम .. जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके, कहां उसे विश्राम। अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो, लेत होत सब काम॥ बारम्बार .. प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर, कालान्तर तक नाम। सुर सुरों की रचना करती, कहाँ कृष्ण कहाँ राम॥ बारम्बार .. चूमहि चरण चतुर चतुरानन, चारु चक्रधर श्याम। चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर, शोभा लखहि ललाम॥ बारम्बार.. देवि देव! दयनीय दशा में दया–दया तब नाम। त्राहि–त्राहि शरणागत वत्सल शरण रूप तब धाम॥ बारम्बार.. श्रीं, ह्रीं श्रद्धा श्री ऐ विद्या श्री क्लीं कमला काम। कांति, भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी, वर दे तू निष्काम॥ बारम्बार..

बालाजी आरती - Balaji Aarti

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बालाजी आरती ॐजयहनुमतवीरा, स्वामीजयहनुमतवीरा। संकटमोचनस्वामी, तुमहोरणधीरा॥                                            ॐजयहनुमतवीरा.. पवन-पुत्रअंजनी-सुत, महिमाअतिभारी। दुःखदारिद्रयमिटाओ, संकटभयहारी॥                                             ॐजयहनुमतवीरा.. बालसमयमेंतुमने, रविकोभक्षलियो। देवनस्तुतिकीन्हीं, तुरतहिंछोड़दियो॥                                            ॐजयहनुमतवीरा.. कपिसुग्रीवरामसंग, मैत्रीकरवाई। अभिमानीबलिमेट्यो, कीर्तिरहीछाई॥                                             ॐजयहनुमतवीरा.. जारिलंकसिय-सुधिलेआए, वानरहर्षाए। कारजकठिनसुधारे, रघुबरमनभाए॥                                             ॐजयहनुमतवीरा.. शक्तिलगीलक्ष्मणको, भारीसोचभयो। लायसंजीवनबूटी, दुःखसबदूरकियो॥                                             ॐजयहनुमतवीरा.. रामहिंलेअहिरावण, जबपातालगयो। ताहीमारिप्रभुलाये, जयजयकारभयो॥                                             ॐजयहनुमतवीरा.. राजतमेहंदीपुरमें, दर्शनसुखकारी। मंगलऔरशनिश्चर, मेलाहैजारी॥                                            

श्री पार्वती चालीसा - Shri Parvati Chalisa

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श्री पार्वती चालीसा ॥ दोहा ॥  जय गिरी तनये डग्यगे शम्भू प्रिये गुणखानी गणपति जननी पार्वती अम्बे ! शक्ति ! भवामिनी ब्रह्मा भेद न तुम्हरे पावे , पांच बदन नित तुमको ध्यावे , शशतमुखकाही न सकतयाष तेरो , सहसबदन श्रम करात घनेरो। तेरो पार न पाबत माता , स्थित रक्षा ले हिट सजाता , आधार प्रबाल सद्रसिह अरुणारेय , अति कमनीय नयन कजरारे। ललित लालट विलेपित केशर कुमकुम अक्षतशोभामनोहर कनक बसन कञ्चुिकि सजाये , कटी मेखला दिव्या लहराए कंठ मदार हार की शोभा , जाहि देखि सहजहि मन लोभ बालार्जुन अनंत चाभी धारी , आभूषण की शोभा प्यारी। नाना रत्न जड़ित सिंहासन , टॉपर राजित हरी चारुराणां , इन्द्रादिक परिवार पूजित , जग मृग नाग यज्ञा राव कूजित। श्री पार्वती चालीसा  गिरकल्िास , निवासिनी जय जय , कोटिकप्रभा विकासिनी जय जय , त्रिभुवन सकल , कुटुंब तिहारी , अनु -अनु महमतुम्हारी उजियारी। कांत हलाहल को चबिचायी , नीलकंठ की पदवी पायी , देव मगनके हितुसकिन्हो , विश्लेआपु तिन्ही अमिडिन्हो। ताकि , तुम पत्नी छविधारिणी , दुरित विदारिणीमंगलकारिणी , देखि परम सौंदर्य तिहारो , त्रिभुवन चकित बना

नैना देवी आरती - Naina Devi Aarti

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नैना देवी आरती तेरा अद्भुत रूप निराला, आजा मेरी नैना माई। तुझ पै तन–मन–धन सब वारूँ आजा मेरी माई॥ सुन्दर भवन बनाया तेरा, तेरी शोभा न्यारी, नीके–नीके खम्बे लागे, अद्भुत चित्तर कारी। तेरे रंग बिरंगा द्वारा॥ आजा.. झांझा और मिरदंगा बाजे और बाजे शहनाई, तुरई नगाड़ा ढोलक बाजे, तबला शब्द सुनाई। तेरा द्वार पै नौबत बाजे। आजा.. पीला चोला जरद किनारी लाल ध्वजा फहराये, सिर लालो दा मुकुट विराजे निगाह नहिं ठहराये। तेरा रूप न वरना जाये। आजा.. पान सुपारी ध्वजा, नारियल भेंट तिहारी लागे, बालक बूढ़े नर नारी की भीड़ खड़ी तेरे आगे। तेरी जय जयकार मनावे। आजा.. कोई गाये कोई बजाये कोई ध्यान लगाये, कोई बैठा तेरे आंगन नाम की टेर सुनाये। कोई नृत्य करे तेरे आगे। आजा.. कोई मांगे बेटा बेटी किसी को कंचन माया, कोई मांगे जीवन साथी, कोई सुन्दर काया। भक्तों किरपा तेरी मांगे। आजा..

सूर्य देव के 108 नाम - 108 Names of Lord Surya

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भगवान सूर्य देव एक मात्र ऐसे देव हैं जो साक्षात लोगों को दिखाई देते हैं। सूर्य देव का वर्णन वेदों और पुराणों में भी किया गया है। इसके अलावा एक प्रत्यक्ष देव के रूप में सूर्य देव का वर्णन कई जगह किया गया है। इनकी पत्नी का नाम अदिति और छाया है तथा उनके पुत्र शनि देव है जिन्हें न्याय का देवता कहा जाता है। इन्हें कई नामों से जाना जाता है आइए जाने सूर्य देव के 108 नाम अर्थ सहित:- सूर्य देव के 108 नाम   1.अरुण- तांबे जैसे रंग वाला 2.शरण्य- शरण देने वाला 3.करुणारससिन्धु- करुणा- भावना के महासागर 4.असमानबल- असमान बल वाले 5.आर्तरक्षक- पीड़ा से रक्षा करने वाले 6.आदित्य- अदिति के पुत्र 7.आदिभूत- प्रथम जीव 8.अखिलागमवेदिन- सभी शास्त्रों के ज्ञाता 9.अच्युत- जिसता अंत विनाश न हो सके (अविनाशी) 10.अखिलज्ञ- सब कुछ का ज्ञान रखने वाले 11.अनन्त- जिसकी कोई सीमा नहीं है 12.इना- बहुत शक्तिशाली 13.विश्वरूप- सभी रूपों में दिखने वाला 14.इज्य- परम पूजनीय 15.इन्द्र- देवताओं के राजा 16.भानु- एक अद्भुत तेज के साथ 17.इन्दिरामन्दिराप्त- इंद्र निवास का लाभ पाने वाले 18.वन्दनीय- स्तुती करने योग

सुन्दर काण्ड - Sundarkand

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सुन्दर काण्ड श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस ~~~~~~~~ पञ्चम सोपान सुन्दरकाण्ड श्लोक शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् । रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्।।1।। नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा। भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।2।। अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।3।। जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए।। तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई।। जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी।। यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा।। सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।। बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी।। जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता।। जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति