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भगवान् विष्णु के जपनीय मन्त्र (Lord Vishnu mantra Jpaniy)

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भगवान विष्णु जी त्रिदेवों में से एक हैं। विष्णु जी को सृष्टि का संचालक कहा जाता हैं। विष्णु की पत्नी लक्ष्मी है। विष्णु जी क्षीर सागर में विराजमान रहते हैं। यह अपने भक्तों पर विशेष कृपा दृष्टि बनाए रखते है और उन्हें शुभ फल प्रदान करते हैं। भगवान् विष्णु के जपनीय मन्त्र भगवान विष्णु एवं किसी भी देवी—देवता के मन्त्र का जाप करने से पूर्व शास्त्रीय नियमानुसार विनियोग, ह्रदयादि न्यास, करन्यास, षोडशोपचार पूजन, प्राणायाम, ध्यानादि प्रक्रियाएॅं करना आवश्यक मना गया है। जपोपरान्त भगवान् विष्णु के प्रसिद्ध स्तोत्र 'विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र' का पाठ करने का विधान है। इसके अतिरिक्त भगवान सम्बन्धी अन्य स्तोत्रों का पाठ भी कर श्रद्धानुसार किया जा सकता है। जैसे कुछ स्तोत्र इस प्रकार है— नृसिंह स्तोत्र, संकटनाशन स्तोत्र, श्रीनारायण स्तोत्र, नारायण  कवच, नारायणाष्टक, पापप्रशमन विष्णु स्तोत्र, गजेन्द्रमोक्ष स्तोत्र, कमलेनत्र स्तोत्र, श्रीविष्णो अष्टविशति नाम स्तोत्र, हरिहर स्तोत्र। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए। ॐ नमो: नारायण ।। ॐ नमोः नारायणाय ।। ॐ नमो

श्री कुष्णाष्टकम् - Shri Krishnashtakam

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 ।।श्री कुष्णाष्टकम्।। वसुदेवसुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । दॆवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दॆ जगद्गुरुम् ॥ अतसी पुष्प सङ्काशं हार नूपुर शेभितम् । रत्न कङ्कण केयूरं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥ कुटिलालक संयुक्तं पूर्णचन्द्र निभाननम् । विलसत्कुण्डलधरं कृष्णं वन्दे जगद्गुरम् ॥ मन्दार गन्ध संयुक्तं चारुहासं चतुर्भुजम् । बर्हि पिंछाव चूडाङ्गं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥ उत्फुल्ल पद्मपत्राक्षं नील जीमूत सन्निभम् । यादवानां शिरेरत्नं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥ रुक्मिणी केलि संयुक्तं पीताम्बर सुशेभितम् । अवाप्त तुलसी गन्धं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥ गेपिकानां कुचद्वन्द कुङ्कुमाङ्कित वक्षसम् । श्रीनिकेतं महेष्वासं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥ श्रीवत्साङ्कं महोरस्कं वनमाला विराजितम् । शङ्खचक्र धरं दॆवं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥ कृष्णाष्टक मिदं पुण्यं प्रातरुत्थाय यः पठेत् । कोटिजन्म कृतं पापं स्मरणॆन विनश्यति ॥ ।। इति कृष्णाष्टकम् सम्पूर्णम् ।।

तुलसी माता कौन है।.....(who is tulsi mata)

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तुलसी माता कौन है।..... तुलसी जी को हिन्दू धर्म में बेहद पवित्र और पूजनीय माना जाता है। तुलसी के पेड़ और इसके पत्तों का धार्मिक महत्त्व होने के साथ वैज्ञानिक महत्त्व भी है। तुलसी के पौधे को एंटी-बैक्टीरियल माना जाता है, स्वास्थ्य के नजरिए से यह बेहद लाभकारी होती हैं।  पुराणों में तुलसी जी को भगवान श्री हरी विष्णु को बहुत प्रिय हैं। तुलसी के पौधे को घर में लगाने, उसकी पूजा करने और कार्तिक माह में तुलसी विवाह आदि से जुड़ी कई कथाएं हिन्दू पुराणों में वर्णित हैं। तुलसी जी से जुड़ी पौराणिक कथा श्रीमद देवी भागवत के अनुसार प्राचीन समय में  धर्मध्वज नाम का एक राजा था और उसकी पत्नी माधवी, दोनों गंधमादन पर्वत पर रहते थे। माधवी हमेशा सुंदर उपवन में आनंद किया करती थी। ऐसे ही काफी समय बीत गया और उन्हें इस बात का बिलकुल भी ध्यान नहीं रहा। परंतु कुछ समय पश्चात धर्मध्वज के हृदय में ज्ञान का उदय हुआ और उन्होंने विलास से अलग होने की इच्छा की। दूसरी तरफ माधवी गर्भ से थी। कार्तिक माह पूर्णिमा के दिन माधवी के गर्भ से एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ। इस कन्या की सुंदरता देख इसका नाम तुलसी रखा गया।