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चरणामृत और पंचामृत का महत्व और इसके बिना क्यों अधूरी है पूजा?

 कहा जाता है की हिंदू धर्म की कोई भी पूजा ​चरणामृत या पंजामृत के बिना पूरी नहीं होती है। परंन्तु इसके महत्व के बारे में बहुत कम लोग है जिनको यह बात पाता ​होगी चलिऐ आपको इसके महत्व के बारे में बताते है। चरणामृत क्या है? त्युहर अकालमृ णं सर्वव्याधिविनाशनम् ।  विष्णोः पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।। चरणामृत दो अक्षरों को जोड के बना है, चरण एवं अमृत। यहां चरण शब्द का संबंध प्रभु के चरणों से है  अमृत शब्द का संबंध एक पवित्र जल है। ऐसा जल जो पहले तो साधारण पानी ही था किन्तु भगवान के चरणों से उसका मेल होने के बाद वह अमृत में तब्दील हो गया। पंचामृत क्या है? पंचामृत का मतलब होता है पांच अमृत यानि पांच पवित्र वस्तुओं से मिलकर बना अमृत, जो कि पंच मेवा से ( पांच तरह के मेवा) से मिलकर बनता है। पंचामृत कई रोगों में लाभदायक और मन को शांति प्रदान करने वाला होता है। इसका आध्यात्मिक पहलू भी है जैसे—  दूध पंचामृत का पहला भाग है। यह शुभ्रता का प्रतीक है अर्थात हमारा जीवन दूध की तरह निष्कलंक होना चाहिए। दही का गुण है कि यह दूध को अपने जैसा बनाता है। दही चढ़ाने का अर्थ यह है ​

अच्युतस्याष्टकम् -Achyutastakam

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।। अच्युतस्याष्टक म्  ।। अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामॊदरं वासुदॆवं हरिम् । श्रीधरं माधवं गॊपिका वल्लभं जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे ॥ 1 ॥ अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं माधवं श्रीधरं राधिका राधितम् । इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधॆ ॥ 2 ॥ विष्णवे जिष्णवे शङ्कने चक्रिणे रुक्मिणी राहिणे जानकी जानये । वल्लवी वल्लभायार्चिता यात्मने कंस विध्वंसिनॆ वंशिनॆ तॆ नमः ॥ 3 ॥ कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे । अच्युतानन्त हे माधवाधेक्षज द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ॥ 4 ॥ राक्षस क्षौभितः सीतया शेभितो दण्डकारण्यभू पुण्यताकारणः । लक्ष्मणौनान्वितौ वानरै: सेवितो अगस्त्य सम्पूजितॊ राघवः पातु माम् ॥ 5 ॥ धेनुकारिष्टका‌निष्टिकृद्-द्वेषिहा केशिहा कंसहृद्-वंशिकावादकः । पूतनाकोपकः सूरजाखेलनरो बालहोपालकः पातु मां सर्वदा ॥ 6 ॥ बिद्युदुद्-योतवत्-प्रस्फुरद्-वाससं प्रावृडम्-भौरदवत्-प्रौल्लसद्-विग्रहम् । वान्यया मालया शौभितौरः स्थलं लोहिताङ्-घिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥ 7 ॥ कुञ्चितैः कुन्तलै भ्राजमानाननं रत्नमौलिं लसत्-कुण्डलं