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श्री अन्नपूर्णा देवी कि आरती (Shri Annapurna Devi Aarti)

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श्री अन्नपूर्णा देवी कि आरती     बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम .. जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके, कहां उसे विश्राम। अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो, लेत होत सब काम॥ बारम्बार .. प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर, कालान्तर तक नाम। सुर सुरों की रचना करती, कहाँ कृष्ण कहाँ राम॥ बारम्बार .. चूमहि चरण चतुर चतुरानन, चारु चक्रधर श्याम। चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर, शोभा लखहि ललाम॥ बारम्बार.. देवि देव! दयनीय दशा में दया–दया तब नाम। त्राहि–त्राहि शरणागत वत्सल शरण रूप तब धाम॥ बारम्बार.. श्रीं, ह्रीं श्रद्धा श्री ऐ विद्या श्री क्लीं कमला काम। कांति, भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी, वर दे तू निष्काम॥ बारम्बार..

आरती श्री सत्यनारायणजी - Aarti Shri Satyanarayan

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आरती श्री सत्यनारायणजी जय लक्ष्मीरमणा श्री जय लक्ष्मीरमणा। सत्यनारायण स्वामी जनपातक हरणा॥                                                          जय लक्ष्मीरमणा। रत्नजड़ित सिंहासन अद्भुत छवि राजे। नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजे॥                                                          जय लक्ष्मीरमणा। प्रगट भये कलि कारण द्विज को दर्श दियो। बूढ़ो ब्राह्मण बनकर कंचन महल कियो॥                                                         जय लक्ष्मीरमणा। दुर्बल भील कठारो इन पर कृपा करी। चन्द्रचूड़ एक राजा जिनकी विपति हरी॥                                                          जय लक्ष्मीरमणा। वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दीनी। सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर स्तुति कीनी॥                                                         जय लक्ष्मीरमणा। भाव भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धर्यो। श्रद्धा धारण कीनी तिनको काज सर्यो॥                                                        जय लक्ष्मीरमणा। ग्वाल बाल संग राजा वन में भक्ति करी। मनवांछित फल दीनो दीनदयाल हरी॥      

श्री अर्द्धनारीश्वर स्तोत्र - Shri Ardhanarishwar Stotra

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।। अर्द्धनारीश्वर स्तोत्र ।। चाम्बेये गौरार्थ शरीराकायै कर्पूर गौरार्थ शरीरकाय तम्मिल्लकायै च जटाधराय नमः शिवायै च नमः शिवाय . चपंगी फूल सा हरित पार्वतिदेविको अपने अर्द्ध शरीर को जिसने दिया है कर्पूर रंग -सा जटाधारी शिव को मेरा नमस्कार. कस्तूरिका कुंकुम चर्चितायै चितारजः पुंज विचर्चिताय कृतस्मारायै विकृतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय . कस्तूरी -कुंकुम धारण कर अति सुन्दर लगनेवाली पार्वती देवी को जिसने अपने अर्द्ध देह दिया हैं , उस शिव को नमस्कार.अपने सम्पूर्ण शरीर पर विभूति मलकर दर्शन देनेवाले शिव को नमस्कार.मन्मथ के विकार नाशक शिव को नमकार. जणत क्वणत कंगण नूपुरायै पादाप्ज राजत पणी नूपुराय . हेमांगदायै च पुजंगदाय नमः शिवायै च नमः शिवाय कंकन -नूपुर आदि आभूषण पहने पार्वती देवी को पंकज पाद के परमेश्वर ने अपने अर्द्ध शरीर दिया है. स्वर्णिम वर्ण के उस शिव को  नमस्कार. विशाल नीलोत्पल लोचनायै विकासी पंकेरुह लोचनाय . समेक्षणायै विशामेक्षनाय नमः शिवायै च नमः शिवाय . विशालाक्षी पार्वती देवी को अपने अर्ध शरीर दिए त्रिनेत्र परमेश्

श्री हनुमत स्तवन - Shri Hanumat Stavan

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सोरठा : प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ज्ञानघन । जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥ १॥ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम् । दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ॥ २॥ सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम् । रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥ ३॥ गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम् । रामायणमहामालारत्नं वन्देऽनिलात्मजम् ॥ ४॥ अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम् । कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम् ॥ ५॥ महाव्याकरणाम्भोधिमन्थमानसमन्दरम् । कवयन्तं रामकीर्त्या हनुमन्तमुपास्महे ॥ ६॥ उल्लङ्घ्य सिन्धो: सलिलं सलीलं य: शोकवह्निं जनकात्मजाया: । आदाय तेनैव ददाह लङ्कां नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम् ॥ ७॥ मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥ ८॥ आञ्जनेयमतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीयविग्रहम् । पारिजाततरुमूलवासिनं भावयामि पवमाननन्दनम् ॥ ९॥ यत्र-यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र-तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम् । बाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ॥ १०॥

बगलामुखी कवच - Baglamukhi Kavach

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अथ बगलामुखी कवचम् - श्रुत्वा च बगलापूजां स्तोत्रं चापि महेश्वर । इदानी श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ॥ १ ॥ वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वा ऽ शुभविनाशनम् । शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दु:खनाशनम् ॥२॥ श्रीभैरव उवाच : कवचं शृणु वक्ष्यामि भैरवीप्राणवल्लभम् । पठित्वा धारयित्वा तु त्रैलोक्ये विजयी भवेत् ॥३॥ ॐ अस्य श्री बगलामुखीकवचस्य नारद ऋषि: । अनुष्टप्छन्द: । बगलामुखी देवता । लं बीजम् । ऐं कीलकम् पुरुषार्थचष्टयसिद्धये जपे विनियोग: । ॐ शिरो मे बगला पातु हृदयैकाक्षरी परा । ॐ ह्ली ॐ मे ललाटे च बगला वैरिनाशिनी ॥१॥ गदाहस्ता सदा पातु मुखं मे मोक्षदायिनी । वैरिजिह्वाधरा पातु कण्ठं मे वगलामुखी ॥२॥ उदरं नाभिदेशं च पातु नित्य परात्परा । परात्परतरा पातु मम गुह्यं सुरेश्वरी ॥३॥ हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती परिपातु मे । विवादे विषमे घोरे संग्रामे रिपुसङ्कटे ॥४॥ पीताम्बरधरा पातु सर्वाङ्गी शिवनर्तकी । श्रीविद्या समय पातु मातङ्गी पूरिता शिवा ॥५॥ पातु पुत्रं सुतांश्चैव कलत्रं कालिका मम । पातु नित्य भ्रातरं में पितरं शूलिनी सदा ॥६॥ रंध्

गंगा दशहरा स्तोत्र

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।। गंगा दशहरा स्तोत्र ।। ॐ नमः शिवायै गंगायै , शिवदायै नमो नमः । नमस्ते विष्णु-रुपिण्यै , ब्रह्म-मूर्त्यै नमोऽस्तु ते ।। नमस्ते रुद्र-रुपिण्यै , शांकर्यै ते नमो नमः । सर्व-देव-स्वरुपिण्यै , नमो भेषज-मूर्त्तये ।। सर्वस्य सर्व-व्याधीनां , भिषक्-श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते । स्थास्नु-जंगम-सम्भूत-विष-हन्त्र्यै नमोऽस्तु ते ।। संसार-विष-नाशिन्यै , जीवानायै नमोऽस्तु ते । ताप-त्रितय-संहन्त्र्यै , प्राणश्यै ते नमो नमः ।। शन्ति-सन्तान-कारिण्यै , नमस्ते शुद्ध-मूर्त्तये । सर्व-संशुद्धि-कारिण्यै , नमः पापारि-मूर्त्तये ।। भुक्ति-मुक्ति-प्रदायिन्यै , भद्रदायै नमो नमः । भोगोपभोग-दायिन्यै , भोग-वत्यै नमोऽस्तु ते ।। मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु , स्वर्गदायै नमो नमः । नमस्त्रैलोक्य-भूषायै , त्रि-पथायै नमो नमः ।। नमस्त्रि-शुक्ल-संस्थायै , क्षमा-वत्यै नमो नमः । त्रि-हुताशन-संस्थायै , तेजो-वत्यै नमो नमः ।। नन्दायै लिंग-धारिण्यै , सुधा-धारात्मने नमः । नमस्ते विश्व-मुख्यायै , रेवत्यै