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गुरू अष्टकम् (Guru Ashakam)

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।। गुरू अष्टकम् ।। शरीरं सुरूपं तथा वा कलत्रं यशश्र्चारु चित्रं धनं मेरुतुल्यं मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||1 भावार्थ— यदि शरीर रुपवान हो, पत्नी भी रूपसी हो और सत्कीर्ति चारों दिशाओं में विस्तरित हो, मेरु पर्वत के तुल्य अपार धन हो, किंतु गुरु के श्रीचरणों में यदि मन आसक्त न हो तो इन सारी उपलब्धियों से क्या लाभ? कलत्रं धनं पुत्रपौत्रादि सर्वं गृहं बान्धवाः सर्वमेतद्धि जातम् मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||2 भावार्थ— सुन्दरी पत्नी, धन, पुत्र-पौत्र, घर एवं स्वजन आदि प्रारब्ध से सर्व सुलभ हो किंतु गुरु के श्रीचरणों में मन की आसक्ति न हो तो इस प्रारब्ध-सुख से क्या लाभ? षडङ्गादिवेदो मुखे शास्त्रविद्या कवित्वादि गद्यं सुपद्यं करोति मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं || 3 भावार्थ— वेद एवं षटवेदांगादि शास्त्र जिन्हें कंठस्थ हों, जिनमें सुन्दर काव्य-निर्माण की प्रतिभा हो, किंतु उसका मन यदि गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न हो तो इन सदगुणों से क्या लाभ? विदेशे

नैना देवी चालीसा - Naina Devi Chalisa

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   नैना देवी चालीसा दोहा नेनो बस्ती छवि सकता दुरगे नेना मॅट | प्रथा काल सिमरन कारू की विख्यात जग हैं | सुख वैभव साब आपके चरणो का प्रताप | ममता अपनी दीजिए माई बालक कारू जाप | | चोपैई नमस्कार हैं नेना माता | दीन दुखी की भाग्य विधाता | | पार्वती ने दिया अंश हैं | नेना देवी नाम किया हैं | | दाबी रही थी पिंडी होकर | चारटी गये वाहा खादी होकर | | दूध पिया या थी मुस्काई | | एक दिन एएआई जाना उँसुईया | नेना ने देखी सूभ लीला | अंधेरा ई भगा उछा टीला | | सांत किया सपने माई जाकर | मुझे पूज नेना तू आकर | | मूर्ख पात्र से दूध भज ले | प्रेम भावना से मुझे जप ले | | तेरा कुल रोशन कर दुंगगी | भंडारे तेरे भर दुंगगी | | नेना ने आज्ञा मैं मन | शिव शक्ति का नाम बखाना | |  मुस्काई दिया फलित वार माँ | ब्रहाम्मद पूजा करवाई गाया | ब्रह्ममा विष्णु शंकर आये | भवन आपके पुष्प चडाए | | पूजन ऐ साब नर नारी | घाटी बानी शिवालिक प्यारी | | ज्वाला माँ से प्रेम तिहरा | जोतो से मिलता हैं सहारा | | पत्तो बराबर हैं जोते आती | तुॅंरे भवन हैं चा जाति | | जिनसे मिटता हैं अंधिय

हनुमान जी के 108 नाम (108 Names of Hanuman अर्थ सहित

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हनुमान जी के 108 नाम (108 Names of Lord Hanuman) 108 Names of Hanuman अर्थ सहित 1.आंजनेया : अंजना का पुत्र   2.महावीर : सबसे बहादुर      3.हनूमत : जिसके गाल फुले हुए हैं                       4.मारुतात्मज : पवन देव के लिए रत्न जैसे प्रिय       5.तत्वज्ञानप्रद : बुद्धि देने वाले                               6.सीतादेविमुद्राप्रदायक : सीता की अंगूठी भगवान राम को देने वाले     7.अशोकवनकाच्छेत्रे : अशोक बाग का विनाश करने वाले         8.सर्वमायाविभंजन : छल के विनाशक 9.सर्वबन्धविमोक्त्रे : मोह को दूर करने वाले 10.रक्षोविध्वंसकारक : राक्षसों का वध करने वाले 11.परविद्या परिहार : दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाले 12.परशौर्य विनाशन : शत्रु के शौर्य को खंडित करने वाले 13.परमन्त्र निराकर्त्रे : राम नाम का जाप करने वाले 14.परयन्त्र प्रभेदक : दुश्मनों के उद्देश्य को नष्ट करने वाले 15.सर्वग्रह विनाशी : ग्रहों के बुरे प्रभावों को खत्म करने वाले 16.भीमसेन सहायकृथे : भीम के सहायक 17.सर्वदुखः हरा : दुखों को दूर करने वाले 18.सर्वलोकचारिणे : सभी जगह वास करने वाले

कार्तिक पूर्णिमा क्या है? - What is Kartik Purnima

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वर्ष 2016 में कार्तिक पूर्णिमा 15 अक्टूबर को है। कार्तिक पूर्णिमा क्या है? हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का व्रत बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष पंद्रह पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर १६ हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान भी कहा जाता है। इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि इस दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और तब से उन्हें त्रिपुरारी के रूप में पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान हो जाता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं ( नक्षत्र ) का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फाल प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों को बचाने के लिए मत्स्य अवतार ​धारण किया था। कार्तिक पूर्ण