कार्तिक पूर्णिमा क्या है? - What is Kartik Purnima
वर्ष 2016 में कार्तिक पूर्णिमा 15 अक्टूबर को है।
कार्तिक पूर्णिमा क्या है?
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का व्रत बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष पंद्रह पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर १६ हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान भी कहा जाता है। इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि इस दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और तब से उन्हें त्रिपुरारी के रूप में पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान हो जाता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं ( नक्षत्र ) का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फाल प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। कार्तिक पूर्णिमा का माहाभारत,सकन्द पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, देवी भागवत पुराण में भी उल्लेख मिलता है
कहा जाता है कि सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा के दिन को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयाई सुबह स्नान कर गुरुद्वारों में जाकर गुरुवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताए रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा का क्या महत्व है इसके बारे में जानते है-:
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है। इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान का भी बहुत महत्व होता है। इस जो भी दान किया जाता हैं उसका कई गुणा लाभ मिलता है। कहा जाता है कि इस दिन जो भी व्याक्ति कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो कि मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है।
शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे—: गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी, हरिद्वार में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को दान देने का तो फल मिलता ही है साथ ही बहन, भांजे, बुआ आदि को भी दान देने से पुण्य मिलता है। शाम के समय निम्न मंत्र से चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिए:
वसंतबान्धव विभो शीतांशो स्वस्ति न: कुरु।
गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रश्मियों से अमृत बरसता है। इसी रात्रि को भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग महारास किया था आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या रास पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है। इस रात्रि में चद्रमा का ओज सबसे तेजवान और ऊर्जावान होता है। नारद पुराण के अनुसारए शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी में मां लक्ष्मी आपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर—कमलों में वर और अभय लिए रात्रि में पृथ्वी पर भ्रमण करती है। वह देखती है कि अपने कर्तव्यों को लेकर कौन जाग्रत है। इसीलिए इस रात मां लक्ष्मी की उपासना की जाती है। मान्यता यह भी है कि भगवान श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों के संग दिव्य रास शरद पूर्णिमा को रचाया था। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है, भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा हैं, 'पुष्णामि चौषधि सर्वा:सोमो भूत्वा रसात्यमक:।' आर्थात मैं रसस्वरूप अर्थात अमृतमय चंद्रमा होकर संपूर्ण औषधियों को आर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हुॅं।
शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में खीर रखने का विधान है। खीर में मिश्रित दूध, चीनी और चावल धवल होने के कारक भी चंद्रमा ही हैं।
अत: इनमेंं चद्रमा का प्रभव सर्वाधिक रहता है। इस दिन लोग खीर को चांदनी में रख देते है। और सुबह उसे प्रसाद के रूप में खाते है क्योंकि मान्यता है कि चंद्रमा की किरणों के कारण यह खीर अमृततुल्य हो जाती है, जिसे खने से व्यक्ति वर्ष भर निरोगी रहती है। इसलिए इसे आरोग्य का पर्व भी कहते है।
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का व्रत बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष पंद्रह पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर १६ हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान भी कहा जाता है। इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि इस दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और तब से उन्हें त्रिपुरारी के रूप में पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान हो जाता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं ( नक्षत्र ) का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फाल प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। कार्तिक पूर्णिमा का माहाभारत,सकन्द पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, देवी भागवत पुराण में भी उल्लेख मिलता है
कहा जाता है कि सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा के दिन को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयाई सुबह स्नान कर गुरुद्वारों में जाकर गुरुवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताए रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा का क्या महत्व है इसके बारे में जानते है-:
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है। इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान का भी बहुत महत्व होता है। इस जो भी दान किया जाता हैं उसका कई गुणा लाभ मिलता है। कहा जाता है कि इस दिन जो भी व्याक्ति कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो कि मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है।
शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे—: गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी, हरिद्वार में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को दान देने का तो फल मिलता ही है साथ ही बहन, भांजे, बुआ आदि को भी दान देने से पुण्य मिलता है। शाम के समय निम्न मंत्र से चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिए:
वसंतबान्धव विभो शीतांशो स्वस्ति न: कुरु।
गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रश्मियों से अमृत बरसता है। इसी रात्रि को भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग महारास किया था आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या रास पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है। इस रात्रि में चद्रमा का ओज सबसे तेजवान और ऊर्जावान होता है। नारद पुराण के अनुसारए शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी में मां लक्ष्मी आपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर—कमलों में वर और अभय लिए रात्रि में पृथ्वी पर भ्रमण करती है। वह देखती है कि अपने कर्तव्यों को लेकर कौन जाग्रत है। इसीलिए इस रात मां लक्ष्मी की उपासना की जाती है। मान्यता यह भी है कि भगवान श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों के संग दिव्य रास शरद पूर्णिमा को रचाया था। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है, भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा हैं, 'पुष्णामि चौषधि सर्वा:सोमो भूत्वा रसात्यमक:।' आर्थात मैं रसस्वरूप अर्थात अमृतमय चंद्रमा होकर संपूर्ण औषधियों को आर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हुॅं।
शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में खीर रखने का विधान है। खीर में मिश्रित दूध, चीनी और चावल धवल होने के कारक भी चंद्रमा ही हैं।
अत: इनमेंं चद्रमा का प्रभव सर्वाधिक रहता है। इस दिन लोग खीर को चांदनी में रख देते है। और सुबह उसे प्रसाद के रूप में खाते है क्योंकि मान्यता है कि चंद्रमा की किरणों के कारण यह खीर अमृततुल्य हो जाती है, जिसे खने से व्यक्ति वर्ष भर निरोगी रहती है। इसलिए इसे आरोग्य का पर्व भी कहते है।
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