गोपी गीत - Gopi Geet
गोपी गीत' गोंपियॉं भगवान् के चरणचिह्रों के सहारे उनके जानेका मार्ग ढूॅंढ़ती—ढूॅंढ़ती वहॉं जा पहुॅंची। थोड़ी दूरसे ही अन्होंने देखा कि उनकी सखी अपने प्रियतमके वियागसे दुखी होकर अचेत हो गयी है। जब उन्होंने उसे जगाया तब उसने भगवान् श्रीकृष्ण से असे जो प्यार और सम्मान प्राप्त हुहा था वह बात जब गोपियों ने सुनी तो गोपियों आचर्य की सीमा ना रही। इसके बाद गोपियॉं जब ढूॅंढ़ती हुई गयीं तो गोपियों ने देखा कि आगे घना अन्धकार है— घना जंगल है। उन्हें लगा की अगर हम उनके पिछे जायेंगे तो वह और अन्दर चले जायेंगे तब वे लौट आयीं। गोपियों का मन श्रीकृष्णमय हो गया था। भगवान् उनका मन भंग करने के लिए अंतर्धान हो जाते हैं । उन्हें न पाकर गोपियाँ व्याकुल हो जाती हैं श्रीकृष्ण की ही भावना में डुबी हुई गोपियॉं यमुनाती के पावन पुलिनपर—रमणरेती मे लौट आयींऔर एक साथ मिल कर श्रीकृष्ण के गुणों का गान करने लगीं। वे आर्त्त स्वर में श्रीकृष्ण को पुकारती हैं, यही विरहगान गोपी गीत है । इसमें प्रेम के अश्रु,मिलन की प्यास, दर्शन की उत्कंठा और स्मृतियों का रूदन है । भगवद प्रेम सम्बन्ध में गोपियों का प्रेम सबसे निर्मल,