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॥ शम्भुस्तोत्रम् ॥

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नानायोनिसहस्रकोटिषु मुहुः संभूय संभूय तद्- गर्भावासनिरन्तदुःखनिवहं वक्तुं न शक्यं च तत् । भूयो भूय इहानुभूय सुतरां कष्टानि नष्टोऽस्म्यहं त्राहि त्वं करुणातरङ्गितदृशा शंभो दयाम्भोनिधे ॥ १ ॥ बाल्ये ताडनपीडनैर्बहुविधैः पित्रादिभिर्बोधितः तत्कालोचितरोगजालजनितैर्दुःखैरलं बाधितः । लीलालौल्यगुणीकृतैश्च विविधैर्दुश्चोष्टितैः क्लेशितः सोऽहं त्वां शरणं व्रजाम्यव विभो शंभो दयाम्भोनिधे ॥ २ ॥ तारुण्ये मदनेन पीडिततनुः कामातुरः कामिनी- सक्तस्तद्वशगः स्वधर्मविमुखः सद्भिः सदा दूषितः । कर्माकार्षमपारनारकफलं सौख्याशया दुर्मतिः त्राहि त्वं करुणातरङ्गितदृशा शंभो दयाम्भोनिधे ॥ ३ ॥ वृद्धत्वे गलिताखिलेन्द्रियबलो विभ्रष्टदन्तावलिः श्वेतीभूतशिराः सुजर्जरतनुः कम्पाश्रयोऽनाश्रयः । लालोच्छिष्टपुरीषमूत्रसलिलक्लिन्नोऽस्मि दीनोऽस्म्यहं त्राहि त्वं करुणातरङ्गितदृशा शंभो दयाम्भोनिधे ॥ ४ ॥ ध्यातं ते पदाम्बुजं सकृदपि ध्यातं धनं सर्वदा पूजा ते न कृता कृता स्ववपुषः स्त्रग्गन्धलेपार्चनैः । नान्नाद्यैः परितर्पिता द्विजवरा जिह्वैव संतर्पिता पापिष्ठेन मया सदाशिव विभो शंभो दयाम्भोनिधे ॥ ५ ॥ संध्यास

Shri Vindhyeshwari Stotram ( श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र )

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Shri Vindhyeshwari Stotram ( श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र )   निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी। बनेरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ Nishumbha Shumbha Garjini,Prachand Mund Khandini  Bane Rane Prakashini,Bhajami Vindhyavasini. त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धरा विघात हारिणी। गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ Trishool Munda Dharini, Dhara Vighat Harini   Grihe – Grihe Niwasini Bhajami Vindhyavasini.  दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी। वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ Daridra Dukkha Harini, Sada Vibhuti Karini   Viyoga Shoka Harini, Bhajami Vindhyavasini.  लसत्सुलोल लोचनं, लतासनं वरप्रदं। कपाल-शूल धारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ Lasatsulola Lochanam, Latasanam Varapradam   Kapal-Shool Dharini, Bhajami Vindhyavasini. कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनी। वरा-वराननां शुभां भजामि विन्ध्यवासिनी॥ Karabjdanda Dhar

Maa Vaishno Devi Chalisa (माँ वैष्णो देवी चालीसा)

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Maa Vaishno Devi Chalisa ( माँ वैष्णो देवी चालीसा ) सीपवा स्वरूपा सर्वा गुणी ! (मेरी मैया) वैष्णो कष्ट निदान !! शक्ति भक्ति दो हो ह्यूम ! दिव्या शक्ति की ख़ान !! अभ डायइनि भय मोचनी ! करुणा की अवतार !! संकट ट्रस्ट भक्तों का ! कर भी दो उधार !! !! जय जय अंबे जय जगदांबे !! गुफा निवासिनी मंगला माता ! कला तुम्हारी जाग विख्याता !! अल्पा भूदी हम मूड अज्ञानी ! ज्ञान उजियारा दो महारानी !! दुख सागर से ह्यूम निकालो ! भ्रम के भूतों से मया बचलो !! पूत के सब अवरोध हटाना ! अपनी च्चाया में मया च्छुपाना !! !! जय जय अंबे जय जगदांबे !! भक्त वत्सला भैरव हरिणी ! आध अनंता मया जाग जननी !! दिव्या ज्योति जहाँ होये उजागर ! वहाँ उदय हो धर्म दिवाकर !! पाप नाशीनी पुणे की गंगा ! तेरी सुधा से तरें कुसंगा !! अमृतमयी तेरी मधुकर वाणी ! हर लेती अभिमान भवानी !! !! जय जय अंबे जाई जगदांबे !! सुखद सामग्री दो भागटन को ! करो फल दायक मेरी चिंतन को !! दुख में ना विचलित होने देना ! धीरज धर्म ना खोने देना !! उत्साह वर्धक कला तुम्हारी ! मार्ग दर्शक बने हमारी !! घेरे कभी जो विषम अवस्था ! तू ही सुझान

श्री सरस्वती चालीसा - Shri Saraswati Chalisa

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माता सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा गया है। सरस्वती जी को वाग्देवी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सरस्वती जी को श्वेत वर्ण अत्यधिक प्रिय है। श्वेत वर्ण सादगी का परिचायक होता है। कहा जाता है श्री कृष्ण जी ने सर्वप्रथम सरस्वती जी की आराधना की थी। सरस्वती जी की पूजा साधना में चालीसा का विशेष महत्त्व है। जो कि इस प्रकार है। श्री सरस्वती चालीसा  ॥दोहा॥ जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि। बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥ पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु। दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥ ॥चालीसा॥ जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥ जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी॥ रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता॥ जग में पाप बुद्धि जब होती।तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥ तब ही मातु का निज अवतारी।पाप हीन करती महतारी॥ वाल्मीकिजी थे हत्यारा।तव प्रसाद जानै संसारा॥ रामचरित जो रचे बनाई।आदि कवि की पदवी पाई॥ कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥ तुलसी सूर आदि विद्वाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥

माँ शकुंभारी देवी चालीसा - Maa Shakumbhari Devi Chalisa

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माँ शकुंभारी देवी चालीसा दोहा दाहिने भीमा ब्रामरी अपनी छवि दिखाए | बाई ओर सतची नेत्रो को चैन दीवलए | भूर देव महारानी के सेवक पहरेदार | मा शकुंभारी देवी की जाग मई जे जे कार || चौपाई जे जे श्री शकुंभारी माता | हर कोई तुमको सिष नवता || गणपति सदा पास मई रहते | विघन ओर बढ़ा हर लेते || हनुमान पास बलसाली | अगया टुंरी कभी ना ताली || मुनि वियास ने कही कहानी | देवी भागवत कथा बखनी || छवि आपकी बड़ी निराली | बढ़ा अपने पर ले डाली || अखियो मई आ जाता पानी | एसी किरपा करी भवानी || रुरू डेतिए ने धीयाँ लगाया | वार मई सुंदर पुत्रा था पाया || दुर्गम नाम पड़ा था उसका | अच्छा कर्म नही था जिसका || बचपन से था वो अभिमानी | करता रहता था मनमानी || योवां की जब पाई अवस्था | सारी तोड़ी धृम वेवस्था || सोचा एक दिन वेद छुपा लू | हर ब्रममद को दास बना लू || देवी देवता घबरागे | मेरी सरण मई ही आएगे || विष्णु शिव को छोड़ा उसने | ब्रहांमजी को धीयया उसने || भोजन छोड़ा फल ना खाया |वायु पीकेर आनंद पाया || जब ब्रहाम्मा का दर्शन पाया | संत भाव हो वचन सुनाया || चारो वेद भक्ति

चिंतपूर्णी आरती - Shri Chintpoorni Aarti

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चिंतपूर्णी मंदिर, ऊना ( हिमांचल) में समुद्र स्तर से ऊपर 940 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक महत्‍वपूर्ण और पवित्र शक्तिपीठ है मंदिर से हिल स्‍टेशन भारवेन की दूरी मात्र 3 किमी. है। इस मंदिर को सारस्वत पंडित माई दास द्वारा स्‍थापित किया गया था। मंदिर का मुख्‍य आकर्षण एक गर्भ ग्रह और गर्भग्रह अंतरतम है जहां देवी की प्रतिमा स्‍थापित है। इस पत्‍थर के मंदिर में उत्‍तर दिशा में कई प्रवेश द्वार है। यहां आकर श्रद्धालु कई देवी- देवताओं की प्रतिमा के दर्शन करते हैं। यहां स्थित देवी की मूर्ति को पिंडी के नाम से भी जाना जाता है जो सफेद संगमरमर की बनी हुई है। मंदिर के पश्चिमी भाग में हनुमान जी का मंदिर है। मंदिर परिसर में एक बरगद का वृक्ष है जहां बच्‍चों का मुंड़न संस्‍कार किया जाता है। हर साल यहां तीन बार चिंतपूर्णी मेला लगता है जो महीने के अनुसार, चैत्र, सावन और अषाढ़ में लगाया जाता है। नवरात्र के दौरान यहां के माहौल में हलचल रहती है और नौ दिन तक श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। चिंतपूर्णी आरती  चिंतपूर्णी चिंता दूर करनी जान को तरो भोली मा जान को तरो भोली मा काली दा पुत्रा पवन दा घ

श्री अन्नपूर्णा देवी कि आरती (Shri Annapurna Devi Aarti)

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श्री अन्नपूर्णा देवी कि आरती     बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम .. जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके, कहां उसे विश्राम। अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो, लेत होत सब काम॥ बारम्बार .. प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर, कालान्तर तक नाम। सुर सुरों की रचना करती, कहाँ कृष्ण कहाँ राम॥ बारम्बार .. चूमहि चरण चतुर चतुरानन, चारु चक्रधर श्याम। चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर, शोभा लखहि ललाम॥ बारम्बार.. देवि देव! दयनीय दशा में दया–दया तब नाम। त्राहि–त्राहि शरणागत वत्सल शरण रूप तब धाम॥ बारम्बार.. श्रीं, ह्रीं श्रद्धा श्री ऐ विद्या श्री क्लीं कमला काम। कांति, भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी, वर दे तू निष्काम॥ बारम्बार..

नैना देवी आरती - Naina Devi Aarti

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नैना देवी आरती तेरा अद्भुत रूप निराला, आजा मेरी नैना माई। तुझ पै तन–मन–धन सब वारूँ आजा मेरी माई॥ सुन्दर भवन बनाया तेरा, तेरी शोभा न्यारी, नीके–नीके खम्बे लागे, अद्भुत चित्तर कारी। तेरे रंग बिरंगा द्वारा॥ आजा.. झांझा और मिरदंगा बाजे और बाजे शहनाई, तुरई नगाड़ा ढोलक बाजे, तबला शब्द सुनाई। तेरा द्वार पै नौबत बाजे। आजा.. पीला चोला जरद किनारी लाल ध्वजा फहराये, सिर लालो दा मुकुट विराजे निगाह नहिं ठहराये। तेरा रूप न वरना जाये। आजा.. पान सुपारी ध्वजा, नारियल भेंट तिहारी लागे, बालक बूढ़े नर नारी की भीड़ खड़ी तेरे आगे। तेरी जय जयकार मनावे। आजा.. कोई गाये कोई बजाये कोई ध्यान लगाये, कोई बैठा तेरे आंगन नाम की टेर सुनाये। कोई नृत्य करे तेरे आगे। आजा.. कोई मांगे बेटा बेटी किसी को कंचन माया, कोई मांगे जीवन साथी, कोई सुन्दर काया। भक्तों किरपा तेरी मांगे। आजा..

सुन्दर काण्ड - Sundarkand

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सुन्दर काण्ड श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस ~~~~~~~~ पञ्चम सोपान सुन्दरकाण्ड श्लोक शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् । रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्।।1।। नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा। भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।2।। अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।3।। जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए।। तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई।। जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी।। यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा।। सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।। बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी।। जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता।। जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति