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आरती क्या है और कैसे करनी चाहिये?

आरती को 'आरात्रिक' अथवा 'आरार्तिक' और 'नीराजन' भी कहते हैं। पूजा के अन्त में आरती की जाती है। पूजन में जो त्रुटि रह जाती है, आरती से उसकी पूर्ति होती है। स्कन्दपुराण में कहा गया है। मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरे:। सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे।। भावार्थ— 'पूजन मन्त्रहीन और क्रिया​हीन भी नीराजने 'आरती' कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।' आरती करने का ही नहीं, आरती देखने का भी बड़ा पुण्य लिखा है। हरिभक्तिविलास में एक श्लोक है— नीराजनं च य: पश्येंद् देवदेवस्य चक्रिण:। सप्तजन्मनि विप्र: स्यादन्ते च परमं पदम्।। भावर्थ— जो देवदेव चक्रधारी श्रीविष्णुभगवान आरती 'सदा' देखता है, वह सात जन्मोंतकद ब्राह्मण होकर अन्तमें परमपद को प्राप्त होता है। धूपं चारात्रिकं पश्येत् कराभ्यां च प्रवन्दते। कुलकोटिं समुदधृत्य याति विष्णो: परं पदम्।। 'जो धूप और आरती को देखता है और दोनों हाथों से आारती लेता है, वह करोड़ पीढ़ियों का उद्धार करता है और भगवान् विष्णु के परमपद को प्राप्त होता है।' आरती में पहले म