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होली 2025: इतिहास, महत्व, सुरक्षा टिप्स और आधुनिक उत्सव की सम्पूर्ण गाइड | Holi Festival Guide in Hindi

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होली 2024: इतिहास, महत्व, रोचक तथ्य और आधुनिक तरीके | Complete Holi Guide होली 2024: रंगों के साथ संस्कृति का अनूठा संगम 🌈 📜 विषय सूची होली का ऐतिहासिक उद्गम भारत की विविध होली होली विशेष 5 पारंपरिक व्यंजन डिजिटल होली: नई परंपराएँ 1. होली की पौराणिक जड़ें: प्रह्लाद से फाग तक प्राचीन भारतीय ग्रंथों में होली का उल्लेख 'होलिकोत्सव' के रूप में मिलता है... क्यों जलाई जाती है होलिका? हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा का सांस्कृतिक महत्व... 2. भारत के कोने-कोने में होली के रंग 🎭 लट्ठमार होली (उत्तर प्रदेश) बरसाना की विशेष परंपरा जहाँ महिलाएँ पुरुषों को लाठियों से मारती हैं... होला मोहल्ला (पंजाब) सिख परंपरा में मनाया जाने वाला युद्ध कौशल प्रदर्शन... 3. होली की थाली: 5 पारंपरिक स्वाद 🍽️ व्यंजन ...

नव दुर्गा स्त्रोत्रम् (Nav Durga Stotram)

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।। नव दुर्गा स्त्रोत्रम् ।। ॥  गणेशः  ॥ हरिद्राभञ्चतुर्वादु हारिद्रवसनंविभुम् ।  पाशाङ्कुशधरं दैवंमोदकन्दन्तमेव च ॥ ॥  देवी शैलपुत्री  ॥ वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरां।  वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् ॥ ॥ देवी ब्रह्मचारिणी  ॥ दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू । देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥ ॥  देवी चन्द्रघण्टेति  ॥ पिण्डजप्रवरारूढा चन्दकोपास्त्रकैर्युता । प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ॥ ॥  देवी कूष्माण्डा  ॥ सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च । दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥ ॥  देवीस्कन्दमाता  ॥ सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया । शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥ ॥  देवीकात्यायणी  ॥ चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना । कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी ॥ ॥  देवीकालरात्रि  ॥ एकवेणी जपाकर्णपूर नग्ना खरास्थिता । लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ॥ व...

दुर्गा स्तोत्रम् । देवी कीलकम् (Durga Stotram | Devi Keelakam)

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।। कीलकम् स्तोत्रम् ।। ॐ अस्य श्री कीलक स्तोत्र महा मन्त्रस्य । शिव ऋषिः । अनुष्टुप् छन्दः । महासरस्वती देवता । मन्त्रोदित देव्यो बीजम् । नवार्णो मन्त्रशक्ति । श्री सप्त शती मन्त्र स्तत्वं स्री जगदम्बा प्रीत्यर्थे सप्तशती पाठाङ्गत्वएन जपे विनियोगः । ।। ॐ नमश्चण्डिकायै      मार्कण्डेय उवाच  ॐ विशुद्ध ज्ञानदेहाय त्रिवेदी दिव्यचक्षुषे ।   श्रेयः प्राप्ति निमित्ताय नमः सोमार्थ धारिणे ॥१॥ सर्वमेत द्विजानीयान्मन्त्राणापि कीलकम् ।   सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्य तत्परः ॥२॥ सिद्ध्यन्तुच्चाटनादीनि कर्माणि सकलान्यपि ।   एतेन स्तुवतां देवीं स्तोत्रवृन्देन भक्तितः ॥३॥ न मन्त्रो नौषधं तस्य न किञ्चि दपि विध्यते ।   विना जाप्यम् न सिद्ध्येत्तु सर्व मुच्चाटनादिकम् ॥४॥ समग्राण्यपि सेत्स्यन्ति लोकशज्ञ्का मिमां हरः ।   कृत्वा निमन्त्रयामास सर्व मेव मिदं शुभम् ॥५॥ स्तोत्रंवै चण्डिकायास्तु तच्च गुह्यं चकार सः ।   समाप्नोति सपुण्येन तां यथावन्निमन्त्रणां ॥६॥ सोपिऽक्षेम मवाप्नोति सर्व मेव न संशयः ।   ...

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