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श्री गंगा जी की आरती (Shri Gangaji ki Aarti)

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श्री गंगा जी की आरती (Shri Gangaji ki Aarti)   ॐ जय गंगे माता, श्री गंगे माता। जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता। ॐ जय गंगे माता...   चन्द्र-सी ज्योत तुम्हारी जल निर्मल आता। शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता। ॐ जय गंगे माता...   पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता। कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता। ॐ जय गंगे माता...   एक ही बार भी जो नर तेरी शरणगति आता। यम की त्रास मिटा कर, परम गति पाता। ॐ जय गंगे माता...   आरती मात तुम्हारी जो जन नित्य गाता। दास वही जो सहज में मुक्ति को पाता। ॐ जय गंगे माता...   ॐ जय गंगे माता...।।

Maa Vaishno Devi Chalisa (माँ वैष्णो देवी चालीसा)

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Maa Vaishno Devi Chalisa ( माँ वैष्णो देवी चालीसा ) सीपवा स्वरूपा सर्वा गुणी ! (मेरी मैया) वैष्णो कष्ट निदान !! शक्ति भक्ति दो हो ह्यूम ! दिव्या शक्ति की ख़ान !! अभ डायइनि भय मोचनी ! करुणा की अवतार !! संकट ट्रस्ट भक्तों का ! कर भी दो उधार !! !! जय जय अंबे जय जगदांबे !! गुफा निवासिनी मंगला माता ! कला तुम्हारी जाग विख्याता !! अल्पा भूदी हम मूड अज्ञानी ! ज्ञान उजियारा दो महारानी !! दुख सागर से ह्यूम निकालो ! भ्रम के भूतों से मया बचलो !! पूत के सब अवरोध हटाना ! अपनी च्चाया में मया च्छुपाना !! !! जय जय अंबे जय जगदांबे !! भक्त वत्सला भैरव हरिणी ! आध अनंता मया जाग जननी !! दिव्या ज्योति जहाँ होये उजागर ! वहाँ उदय हो धर्म दिवाकर !! पाप नाशीनी पुणे की गंगा ! तेरी सुधा से तरें कुसंगा !! अमृतमयी तेरी मधुकर वाणी ! हर लेती अभिमान भवानी !! !! जय जय अंबे जाई जगदांबे !! सुखद सामग्री दो भागटन को ! करो फल दायक मेरी चिंतन को !! दुख में ना विचलित होने देना ! धीरज धर्म ना खोने देना !! उत्साह वर्धक कला तुम्हारी ! मार्ग दर्शक बने हमारी !! घेरे कभी जो विषम अवस्था ! तू ही सुझान

श्री दु्र्गा कवच(Durga kawach)

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॥अथ श्री देव्याः कवचम्॥ ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्,  श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः। ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥ मार्कण्डेय उवाच ॐ यद्‌गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्। यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥१॥ ब्रह्मोवाच अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्। देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥२॥ प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥३॥ पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥४॥ नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥५॥ अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे। विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥६॥ न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे। नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥७॥ यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते। ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥८॥ प्रेतसंस्था तु चा

दुर्गा जी की आरती - Durga Aarti in Hindi

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हिन्दू धर्म में  मां दुर्गा को आदि शक्ति भी कहा जाता है। तथा मां दुर्गा का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। मान्यता है कि दुर्गा जी इस भौतिक संसार में सभी सुखों की दात्री हैं। उनकी भक्ति कर के भक्त अपनी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर सकते हैं। साथ ही साधकों को देवी दुर्गा ही साधनाएं प्रदान करती हैं। मां दुर्गा की साधना में लोग मां की आरती का भी पाठ करते हैं। ।। दुर्गा जी की आरती ।। जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी तुम को निस दिन ध्यावत मैयाजी को निस दिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवजी ।| जय अम्बे गौरी ॥ माँग सिन्दूर विराजत टीको मृग मद को |मैया टीको मृगमद को उज्ज्वल से दो नैना चन्द्रवदन नीको|| जय अम्बे गौरी ॥ कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे| मैया रक्ताम्बर साजे रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे|| जय अम्बे गौरी ॥ केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारी| मैया खड्ग कृपाण धारी सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी|| जय अम्बे गौरी ॥ कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती| मैया नासाग्रे मोती कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति|| जय अम्बे गौरी