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मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् (Mritasanjeevani Stotram)

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मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् एवमारध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयमेश्वरं । मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा ॥१॥ भावार्थ— गौरीपति मृत्युञ्जयेश्र्वर भगवान् शंकरकी विधिपूर्वक आराधना करनेके पश्र्चात भक्तको सदा मृतसञ्जीवन नामक कवचका सुस्पष्ट पाठ करना चाहिये ॥१॥ सारात् सारतरं पुण्यं गुह्याद्गुह्यतरं शुभं ।  महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकं ॥ २॥ भावार्थ— महादेव भगवान् शङ्करका यह मृतसञ्जीवन नामक कवचका तत्त्वका भी तत्त्व है, पुण्यप्रद है गुह्य और मङ्गल प्रदान करनेवाला है ॥२॥ समाहितमना भूत्वा शृणुष्व कवचं शुभं ।  शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ॥३॥ भावार्थ— आचार्य शिष्यको उपदेश करते हैं कि – हे वत्स! ] अपने मनको एकाग्र करके इस मृतसञ्जीवन कवचको सुनो । यह परम कल्याणकारी दिव्य कवच है । इसकी गोपनीयता सदा बनाये रखना ॥३॥ वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवितः ।  मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा ॥४॥ भावार्थ— जरासे अभय करनेवाले, निरन्तर यज्ञ करनेवाले, सभी देवतओंसे आराधित हे मृत्युञ्जय महादेव ! आप पर्व-दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥४॥ दधाअनः शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्

भगवान् शिव की जटाओं में गंगा रहस्य (Secrets of Shiva Ganga in dreadlocks)

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देव नदी गंगा का जल शारीरिक एवं मानसिक क्लेशों को दूर करने वाला है। गंगा वस्तुत: लोकमाता एवं विश्वपावनी है। गंगा के आश्रय से मानव भौतिक उन्नति ही नहीं, अपितु आध्यात्मिक पीयूष को भी ग्रहण करता है। इसके दर्शन, स्मरण, पान एवं स्नान से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते है। भगवान शंकर की जटाओं में चन्द्रमणियों की भान्ति सुशोभित होने वाली मां गंगा का सम्बन्ध ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों से माना गया है। वह पहले ब्रह्मा जी के कम्मलु मे समाई रहीं, फिर भगवान् विष्णु के चरणोदक रूप से प्रवाहित हुई और तदनन्तर महादेव जी की जटाओं में सुशोभि हुई। वाल्मीकि रामायण में गंगा को त्रिपथगा एवं त्रिपथगामिनी कहा गया है। अर्थात् पहिले यह आकाश मार्ग में गईं थीं, उसके बाद देवलोक में गईं, ​फिर जल रूप में भूतल पर पहुॅंंची। भगवान् विष्णु के तीन पाद (पृथ्वी, अन्तरिक्ष और भूलोक) की भान्ति मॉं गंगा का क्षेत्र भी तीन लोक हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार गंगाा की उत्पत्ति हिमालय पत्नी मैना से बतायी गयी है। गंगा उमा से ज्येष्ठ थीं। पूर्वजों के उद्धार के लिए भागीरथ ने अत्यधिक कठोर तप किया। ब्रह्मा जी भगीरथ की तपस्या स

निर्वाण षटकम् (Nirvana Shatakam)

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॥ निर्वाण षटकम्॥ मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥ भावार्थ— मैं मन नहीं कर रहा हूँ, और न ही बुद्धि, और न ही अहंकार, और न ही भीतर के स्व का प्रतिबिंब। मैं पांच इंद्रियों नहीं हूं। मुझे लगता है कि परे हूँ। मैं आकाश नहीं है, न ही पृथ्वी, और न ही आग, और न ही हवा (यानी पांच तत्वों) हूँ। मैं, वास्तव में हूँ अनन्त जानने और आनंद, शिव, प्यार और शुद्ध चेतना है कि। न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश: न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥ भावार्थ— न तो मैं और ऊर्जा के रूप में कहा जा सकता है, और न ही सांस  के पांच प्रकार, और न ही सात सामग्री सुगंध, और न ही पांच कवरिंग (कोष)। न तो मैं उन्मूलन, उत्पत्ति, गति, लोभी, या बोलने के पांच वाद्ययंत्र हूँ। मैं, वास्तव में हूँ अनन्त जानने और आनंद, शिव, प्यार और शुद्ध चेतना है कि। न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव: न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: च

श्री गायत्री चालीसा - Shri Gayatri Chalisa

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माता गायत्री शक्ति, ज्ञान, पवित्रता तथा सदाचार का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि गायत्री मां की आराधना करने से जीवन में सूख-समृद्धि, दया-भाव, आदर-भाव आदि की विभूति होती हैं। माता गायत्री की पूजा में निम्न चालीसा का भी विशेष प्रयोग किया जाता है। श्री गायत्री चालीसा ॥दोहा॥ ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड। शान्ति कान्ति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखण्ड॥ जगत जननी मङ्गल करनि गायत्री सुखधाम। प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम॥ ॥चौपाई॥ भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी। गायत्री नित कलिमल दहनी॥ अक्षर चौविस परम पुनीता। इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता॥ शाश्वत सतोगुणी सत रूपा। सत्य सनातन सुधा अनूपा॥ हंसारूढ सिताम्बर धारी। स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-बिहारी॥ पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला। शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला॥ ध्यान धरत पुलकित हित होई। सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई॥ कामधेनु तुम सुर तरु छाया। निराकार की अद्भुत माया॥ तुम्हरी शरण गहै जो कोई। तरै सकल संकट सों सोई॥ सरस्वती लक्ष्मी तुम काली। दिपै तुम्हारी ज्योति निराली॥ तुम्हरी महिमा पार न पावैं। जो

पार्वती जी की चालीसा - Parvati Ki Chalisa

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मॉं पार्वती जी को आदिशक्ति कहा जाता है। मान्यता के अनुसार काली, दुर्गा, अन्नपूर्णा, गौरा सब देवी पार्वती का ही रूप हैं। पार्वती जी की उपासना करने से सभी मन को शांति मिलती है तथा व्यक्ति के दुखों का अंत हो जाता है। पार्वती जी बहुत दयालु हैं यदि व्यक्ति अपनी गलतियों के लिए सच्चे मन से आराधना करें तो वह तुरंत क्षमा कर देती हैं। चलिए पार्वती चालीसा पढ़ के अपनी गलतियों की क्षमा मांगे । पार्वती जी की चालीसा  ॥ दोहा ॥ जय गिरी तनये डग्यगे शम्भू प्रिये गुणखानी गणपति जननी पार्वती अम्बे ! शक्ति ! भवामिनी ॥ चालीसा॥ ब्रह्मा भेद न तुम्हरे पावे , पांच बदन नित तुमको ध्यावे शशतमुखकाही न सकतयाष तेरो , सहसबदन श्रम करात घनेरो ।। तेरो पार न पाबत माता, स्थित रक्षा ले हिट सजाता आधार प्रबाल सद्रसिह अरुणारेय , अति कमनीय नयन कजरारे ।। ललित लालट विलेपित केशर कुमकुम अक्षतशोभामनोहर कनक बसन कञ्चुकि सजाये, कटी मेखला दिव्या लहराए ।। कंठ मदार हार की शोभा , जाहि देखि सहजहि मन लोभ बालार्जुन अनंत चाभी धारी , आभूषण की शोभा प्यारी ।। नाना रत्न जड़ित सिंहासन , टॉपर राजित हरी चारुरा

श्री सरस्वती चालीसा - Shri Saraswati Chalisa

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माता सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा गया है। सरस्वती जी को वाग्देवी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सरस्वती जी को श्वेत वर्ण अत्यधिक प्रिय है। श्वेत वर्ण सादगी का परिचायक होता है। कहा जाता है श्री कृष्ण जी ने सर्वप्रथम सरस्वती जी की आराधना की थी। सरस्वती जी की पूजा साधना में चालीसा का विशेष महत्त्व है। जो कि इस प्रकार है। श्री सरस्वती चालीसा  ॥दोहा॥ जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि। बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥ पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु। दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥ ॥चालीसा॥ जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥ जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी॥ रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता॥ जग में पाप बुद्धि जब होती।तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥ तब ही मातु का निज अवतारी।पाप हीन करती महतारी॥ वाल्मीकिजी थे हत्यारा।तव प्रसाद जानै संसारा॥ रामचरित जो रचे बनाई।आदि कवि की पदवी पाई॥ कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥ तुलसी सूर आदि विद्वाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥

श्री ललिता माता चालीसा - Shri Lalita Mata chalisa

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श्री ललिता माता चालीसा ॥चौपाई॥ जयति जयति जय ललिते माता। तव गुण महिमा है विख्याता॥ तू सुन्दरी , त्रिपुरेश्वरी देवी। सुर नर मुनि तेरे पद सेवी॥ तू कल्याणी कष्ट निवारिणी। तू सुख दायिनी , विपदा हारिणी॥ मोह विनाशिनी दैत्य नाशिनी। भक्त भाविनी ज्योति प्रकाशिनी॥ आदि शक्ति श्री विद्या रूपा। चक्र स्वामिनी देह अनूपा॥ ह्रदय निवासिनी-भक्त तारिणी। नाना कष्ट विपति दल हारिणी॥ दश विद्या है रुप तुम्हारा। श्री चन्द्रेश्वरी नैमिष प्यारा॥ धूमा , बगला , भैरवी , तारा। भुवनेश्वरी , कमला , विस्तारा॥ षोडशी , छिन्न्मस्ता , मातंगी। ललितेशक्ति तुम्हारी संगी॥ ललिते तुम हो ज्योतित भाला। भक्त जनों का काम संभाला॥ भारी संकट जब-जब आये। उनसे तुमने भक्त बचाए॥ जिसने कृपा तुम्हारी पायी। उसकी सब विधि से बन आयी॥ संकट दूर करो माँ भारी। भक्त जनों को आस तुम्हारी॥ त्रिपुरेश्वरी , शैलजा , भवानी। जय जय जय शिव की महारानी॥ योग सिद्दि पावें सब योगी। भोगें भोग महा सुख भोगी॥ कृपा तुम्हारी पाके माता। जीवन सुखमय है बन जाता॥ दुखियों को तुमने अपनाया। महा मूढ़ जो

हनुमान जी के विवाह का रहस्य - The Secret of Lord Hanuman Marriage

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 चलिये आपको बताते है हनुमान जी के विवाह का रहस्य संकट मोचन हनुमान जी के ब्रह्मचारी रूप से तो हम सब परिचित हैं, उन्हें बाल ब्रम्हचारी भी कहा जाता है। लेकिन क्या अपने कभी यह सुना है की हनुमान जी का विवाह भी हुआ था, और उनका उनकी पत्नी के साथ एक मंदिर भी है, जिसके दर्शन के लिए दूर दूर से स्रद्धालु आते हैं? कहा जाता है कि हनुमान जी के उनकी पत्नी के साथ दर्शन करने के बाद घर मे चल रहे पति पत्नी के बीच के सारे तनाव खत्म हो जाते हैं। हनुमान जी का यह मंदिर आन्ध्र प्रदेश के खम्मम जिले में स्थित है यह मंदिर काफी मायनों में ख़ास है। ख़ास इसलिए है की यहाँ हनुमान जी अपने ब्रम्हचारी रूप में नहीं बल्कि गृहस्थ रूप में अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान है। हनुमान जी के सभी भक्त यही मानते आये हैं की वे बाल ब्रह्मचारी थे.और बाल्मीकि, कम्भ, सहित किसी भी रामायण और रामचरित मानस में बालाजी के इसी रूप का वर्णन मिलता है, लेकिन पराशर संहिता में हनुमान जी के विवाह का उल्लेख है। इसका सबूत है, आंध्र प्रदेश के खम्मम ज़िले में बना यह खास मंदिर जो प्रमाण है हनुमान जी की शादी का। ये मंदिर याद दिलाता है रामदू

शनि देव के 108 नाम - 108 Names of lord Shani

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शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। कहा जाता है कि इनके प्रकोप से बड़े से बड़ा धनवान भी दरिद्र बन जाता है। शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित होता है। इस दिन हनुमान जी को तेल चढ़ाने से शनि के साढ़ेसाती से मुक्ति मिलती है और शनि देव प्रसन्न होते हैं। शनि देव को कई नामों से जाना जाता है जिनमें से 108 इस प्रकार दिये गये है:- शनि देव के 108 नाम (108 Names of lord Shani शनैश्चर- धीरे- धीरे चलने वाला शान्त- शांत रहने वाला सर्वाभीष्टप्रदायिन्- सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला शरण्य- रक्षा करने वाला वरेण्य- सबसे उत्कृष्ट सर्वेश- सारे जगत के देवता सौम्य- नरम स्वभाव वाले सुरवन्द्य- सबसे पूजनीय सुरलोकविहारिण् - सुरह्स की दुनिया में भटकने वाले सुखासनोपविष्ट - घात लगा के बैठने वाले सुन्दर- बहुत ही सुंदर घन – बहुत मजबूत घनरूप - कठोर रूप वाले घनाभरणधारिण् - लोहे के आभूषण पहनने वाले घनसारविलेप - कपूर के साथ अभिषेक करने वाले खद्योत – आकाश की रोशनी मन्द – धीमी गति वाले मन्दचेष्ट – धीरे से घूमने वाले महनीयगुणात्मन् - शानदार गुणों वाला मर्त्यपावनपद – जिनके चरण पूजनीय हो महेश –

भगवान कृष्ण के 108 नाम - 108 Names of Lord Krishna

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भगवान श्रीकृष्ण ने दुनिया को गीता का ज्ञान ​दिया है भगवान श्रीकृष्ण को युग पुरुष भी कहा जाता है। हर युग में भगवान कृष्ण की शिक्षाएं हमारे लिए ज्ञान का स्त्रोत हैं। भगवान कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अहम भूमिका निभाते हुए विश्व को “श्रीमद्भागवत गीता” का उपदेश प्रदान किया है। भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए कृष्ण जी के कई नामों का जाप किया जाता है जिनमें से 108 नाम इस प्रकार हैं: भगवान कृष्ण के 108 नाम   1 अचला  : भगवान। 2 अच्युत  : अचूक प्रभु, या जिसने कभी भूल ना की हो। 3 अद्भुतह  : अद्भुत प्रभु। 4 आदिदेव  : देवताओं के स्वामी। 5 अदित्या  : देवी अदिति के पुत्र। 6 अजंमा  : जिनकी शक्ति असीम और अनंत हो। 7 अजया  : जीवन और मृत्यु के विजेता। 8 अक्षरा  : अविनाशी प्रभु। 9 अम्रुत  : अमृत जैसा स्वरूप वाले। 10 अनादिह  : सर्वप्रथम हैं जो। 11 आनंद सागर  : कृपा करने वाले 12 अनंता  : अंतहीन देव 13 अनंतजित  : हमेशा विजयी होने वाले। 14 अनया  : जिनका कोई स्वामी न हो। 15 अनिरुध्दा  : जिनका अवरोध न किया जा सके। 16 अपराजीत  : जिन्हें हराया न जा सके। 17 अव्युक्ता  : माणभ की तरह स्पष

साईंबाबा के 108 नाम - 108 Names of Sai Baba

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भारतीय समाज प्रमुख संतों में से एक शिरडी के साईं बाबा थे, जो आध्यात्मिक गुरु, योगी, फकीर तथा भगवान के रूप में भी प्रसिद्ध है। साईं बाबा को हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग पूजनीय मानते हैं। साईं बाबा ने अपने जीवन में मानवता को ही अपना धर्म माना था। साईं बाबा को लोग कई नामों से जानते हैं। इन नामों में से कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं: साईंबाबा के 108 नाम  1.साईंनाथ: प्रभु साई 2.लक्ष्मी नारायण: लक्ष्मी नारायण के चमत्कारी शक्ति वाले 3.कृष्णमशिवमारूतयादिरूप: भगवान कृष्ण, शिव, राम तथा अंजनेय का स्वरूप 4.शेषशायिने: आदि शेष पर सोने वाला 5.गोदावीरतटीशीलाधीवासी: गोदावरी के तट पर रहने वाले (सिरडी) 6.भक्तह्रदालय: भक्तों के दिल में वास करने वाले 7.सर्वह्रन्निलय: सबके मन में रहने वाले 8.भूतावासा: सभी प्राणियों में रहने वाले 9.भूतभविष्यदुभवाज्रित: भूत, भविष्य व वर्तमान का ज्ञान देने वाले 10.कालातीताय: समय से परे 11.काल: समय 12.कालकाल: मृत्यु के देवता का हत्यारा 13.कालदर्पदमन: मृत्यु का भय दूर करने वाले 14.मृत्युंजय: मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले 15.अमत्य्र: श्रेष्ठ मानव

श्री सरस्वती स्तुती - Shri Saraswati Stuti

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॥ श्रीसरस्वतीस्तुती ॥ या कुन्देन्दु-तुषारहार-धवला या शुभ्र-वस्त्रावृता या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना । या ब्रह्माच्युत-शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ १॥ दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिः स्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापरेण । भासा कुन्देन्दु-शंखस्फटिकमणिनिभा भासमानाऽसमाना सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना ॥ २॥ आशासु राशी भवदंगवल्लि भासैव दासीकृत-दुग्धसिन्धुम् । मन्दस्मितैर्निन्दित-शारदेन्दुं वन्देऽरविन्दासन-सुन्दरि त्वाम् ॥ ३॥ शारदा शारदाम्बोजवदना वदनाम्बुजे । सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ॥ ४॥ सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृ-देवताम् । देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः ॥ ५॥ पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती । प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ॥ ६॥ शुद्धां ब्रह्मविचारसारपरमा-माद्यां जगद्व्यापिनीं वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् । हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां वन्दे तां परमेश्व