भगवान् शिव की जटाओं में गंगा रहस्य (Secrets of Shiva Ganga in dreadlocks)


देव नदी गंगा का जल शारीरिक एवं मानसिक क्लेशों को दूर करने वाला है। गंगा वस्तुत: लोकमाता एवं विश्वपावनी है। गंगा के आश्रय से मानव भौतिक उन्नति ही नहीं, अपितु आध्यात्मिक पीयूष को भी ग्रहण करता है। इसके दर्शन, स्मरण, पान एवं स्नान से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते है। भगवान शंकर की जटाओं में चन्द्रमणियों की भान्ति सुशोभित होने वाली मां गंगा का सम्बन्ध ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों से माना गया है। वह पहले ब्रह्मा जी के कम्मलु मे समाई रहीं, फिर भगवान् विष्णु के चरणोदक रूप से प्रवाहित हुई और तदनन्तर महादेव जी की जटाओं में सुशोभि हुई।

वाल्मीकि रामायण में गंगा को त्रिपथगा एवं त्रिपथगामिनी कहा गया है। अर्थात् पहिले यह आकाश मार्ग में गईं थीं, उसके बाद देवलोक में गईं, ​फिर जल रूप में भूतल पर पहुॅंंची। भगवान् विष्णु के तीन पाद (पृथ्वी, अन्तरिक्ष और भूलोक) की भान्ति मॉं गंगा का क्षेत्र भी तीन लोक हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार गंगाा की उत्पत्ति हिमालय पत्नी मैना से बतायी गयी है। गंगा उमा से ज्येष्ठ थीं। पूर्वजों के उद्धार के लिए भागीरथ ने अत्यधिक कठोर तप किया। ब्रह्मा जी भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गये और वर मांगने के लिए कहा। भागीरथ ने अपने पूर्वज सागर—पुत्रों के उद्धार के लिए भगीरथ ने अपने तप से भगवान शंकर को संतुष्ट किया। अन्त में प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने जटा से गंगा धारा को छोड़ा। देवनदी गंगा भागीरथ के के पीछे—पीछे कपिल पुनि के आश्रम तक पहुंची जाहां भागीरथ के पूर्वज भस्म हुए ​थे। पावनमयी गंगा जल से स्पर्श करते ही शाप—ग्रस्त सगर पुत्रों की अस्थियों का उद्धार हो गया। इसके साथ ​ही भूलोक पर गंगावतरण से भूलोक वासियों का अनन्तकाल के लिए कल्याण हो गया। ऋषि भागीरथ जी के अथक प्रयासों एवं तप के फलस्वरूप ​ही गंगा का स्वर्ग से भूलोक पर अवतरण हुआ। इसी कारण उनका एक नाम भागीरथी भी है। इनका अवतरण वैशाख शुक्ल संप्तमी तिथि को माना जाता है।

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