आरती बृहस्पतिवार की - Aarti Brihaspativar Ki
आरती बृहस्पतिवार की
जय जय आरती राम तुम्हारी,
राम दयालु भक्त हितकारी। टेक।
जनहित प्रगटे हरि व्रतधारी, जन प्रहलाद प्रहलाद प्रतिज्ञा पाली।
द्रुपदसुता का चीर बढ़ायो, गज के काज पयादे धायो।
दश सिर छेदी बीस भुजा तोरे, तेतीस कोटि देव बंदी छोरी।
छत्र लिए कर लक्ष्मण भ्राता, आरति करत कौशिल्या माता।
शुक शारद नारद मुनि ध्यावें, भरत शत्रुघन चॅंवर ढुरावें।
राम के चरण गहे महावीरा, ध्रुव प्रहलाद बालिसुत विरा।
लंका जीती अवध हरि आए, जब सन्त मिलि मंगल गाए।
सीता सहित सिंहासन बैठे, रामानन्द स्वामी आरती गाए।
राम दयालु भक्त हितकारी। टेक।
जनहित प्रगटे हरि व्रतधारी, जन प्रहलाद प्रहलाद प्रतिज्ञा पाली।
द्रुपदसुता का चीर बढ़ायो, गज के काज पयादे धायो।
दश सिर छेदी बीस भुजा तोरे, तेतीस कोटि देव बंदी छोरी।
छत्र लिए कर लक्ष्मण भ्राता, आरति करत कौशिल्या माता।
शुक शारद नारद मुनि ध्यावें, भरत शत्रुघन चॅंवर ढुरावें।
राम के चरण गहे महावीरा, ध्रुव प्रहलाद बालिसुत विरा।
लंका जीती अवध हरि आए, जब सन्त मिलि मंगल गाए।
सीता सहित सिंहासन बैठे, रामानन्द स्वामी आरती गाए।
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