दिपावली क्या है .. ? चलिऐ जानते है। - Diwali Kya Hai Chaliye Jante hai


दिपावली क्या है ​चलिऐ जानते है। इसके बारे में इसके पीछे कि कहानी।

दिपावली तो सभी मनाते है परंन्तु क्या किसी ने यह जानने कि कोशिस की है कि दिपावली को मनाने के पीछे कारण क्या है, चलिऐ आपको बताते है।
राम अयोध्या लौटे थे -
प्राचीन ग्रन्थ रामायण में बताया गया है कि कई लोग दीपावली को 14 साल के वनवास पश्चात भगवान राम व उनकी पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण की वापसी के सम्मान के रूप में मानते हैं।

निर्वाण दिवस दीपावली-
प्राचीन महाकाव्य महाभारत के अनुसार कुछ लोग दीपावली को पांडवों के 12 वर्षों के वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद उनकी वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं। और एक तरफ कुछ लोग दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह दिन है जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की। मॉंं लक्ष्मी के साथ-साथ भक्त बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश, संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती और धन प्रबंधक कुबेर को प्रशाद अर्पित करते हैं तथा दीपावली को विष्णु की वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप में मनाते है। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा अर्चना करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक ओर आर्थिक दुखों से दूर सुखी रहते हैं।
. जैनियों के मुताबिक तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस दीपावली है।

भारत के पूर्वी क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी की जगह काली की पूजा करते हैं, और इस त्योहार को काली पूजा कहते हैं। 

मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इस दिन को भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं। अन्य क्षेत्रों में, गोवर्धन पूजा (या अन्नकूट) की दावत में श्री कृष्ण के लिए 56 अथवा 108 विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और सांझे रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है।

भारत के पश्चिम और उत्तरी भागों में दीवाली का त्योहार एक नये हिन्दू वर्ष की शुरुआत का प्रतीक हैं।

दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण और कहानियाँ हैं। किंन्तु ज्यादातर यहि कहानी सुनने मे आती है कि दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी मे आज भी लोग यह पर्व मनाते है।

नरकासुर और हिरण्यकश्यप का वध-
कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।

ऐसा नहीं है कि दीपावली केवल हिन्दू धर्म के लोग ही मनाते हैं, इस महान पर्व का सम्बन्ध जैन, बौद्ध और सिक्ख धर्म से जुड़ा है। चलिए जानते हैं कि इन धर्मों में दीपावली मनाने के क्या कारण हैं?

महावीर स्वामी का निर्वाण 

जैन ग्रंथों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की अमावस्या यानी दीपावली के दिन हुआ था। इस दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है और मोक्ष कल्याणक का अर्घ्य चढ़ाया जाता है।

परंपरा से दीपावली को जैन धर्म में वैभवलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, राज्यलक्ष्मी, यशलक्ष्मी, ज्ञानलक्ष्मी आदि की बजाय वैराग्यलक्ष्मी की प्राप्ति पर बल दिया जाता है।

जब भगवान गौतम बुद्ध ज्ञानप्राप्ति के बाद पहली बार कपिलवस्तु में आए।

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार इस धर्म की स्थापना करने वाले भगवान गौतम बुद्ध 2500 वर्ष पूर्व कार्तिक कृष्ण अमावस्या को ज्ञानप्राप्ति के बाद जब पहली बार कपिलवस्तु आए थे तब नगरवासियों और उनके अनुयायियों ने बुद्ध के स्वागत में लाखों दीप जला कर दीपोत्सव मनाया था। तब से बौद्ध धर्म में दीपोत्सव परंपरा बदस्तूर चली आ रही है और यह इस धर्म का एक प्रतिष्ठित पर्व है।

स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास-

. सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ।

दिवाली पूजा विधि

स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर सभी देवताओं की पूजा करनी चाहिए। इस दिन संभव हो तो दिन में भोजन नहीं करना चाहिए। 

घर में शाम के समय पूजा घर में लक्ष्मी और गणेश जी की नई मूर्तियों को एक चौकी पर स्वस्तिक बनाकर तथा चावल रखकर स्थापित करना चाहिए। मूर्तियों के सामने एक जल से भरा हुआ कलश रखना चाहिए। इसके बाद मूर्तियों के सामने बैठकर हाथ में जल लेकर शुद्धि मंत्र का उच्चारण करते हुए उसे मूर्ति पर, परिवार के सदस्यों पर और घर में छिड़कना चाहिए। 

गुड़, फल, फूल, मिठाई, दूर्वा, चंदन, घी, पंचामृत, मेवे, खील, बताशे, चौकी, कलश, फूलों की माला आदि सामग्रियों का प्रयोग करते हुए पूरे विधि- विधान से लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। इनके साथ- साथ देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, काली मां और कुबेर देव की भी विधिपूर्वक पूजा की जाती है। पूजा करते समय 11 छोटे दीप तथा एक बड़ा दीप जलाना चाहिए। 

सभी छोटे दीप को घर के चौखट, खिड़कियों व छतों पर जलाकर रखना चाहिए तथा बड़े दीपक को रात पर जलता हुआ घर के पूजा स्थान पर रख देना चाहिए। 


पूजा में आवश्यक साम्रगी

महालक्ष्मी पूजा या दिवाली  पूजा के लिए रोली, चावल, पान- सुपारी, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, घी या तेल से भरे हुए दीपक, कलावा, नारियल, गंगाजल, गुड़, फल, फूल, मिठाई, दूर्वा, चंदन, घी, पंचामृत, मेवे, खील, बताशे, चौकी, कलश, फूलों की माला, शंख, लक्ष्मी व गणेश जी की मूर्ति, थाली, चांदी का सिक्का, 11 दिए आदि वस्तुएं पूजा के लिए एकत्र कर लेना चाहिए। 


लक्ष्मी मंत्र 

लक्ष्मी जी की पूजा के समय निम्न मंत्र का लगातार उच्चारण करते रहना चाहिए: 
ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम: ॥ 

दीपावली पूजा मुहूर्त 2016
दीपावली के दिन प्रदोषकाल में माता लक्ष्मी जी की पूजा होती है। मान्यता है कि इस समय लक्ष्मी जी की पूजा करने से मनुष्य को कभी दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ता। इस साल पूजा का शुभ मुहूर्त है: 

लक्ष्मी पूजा ​का मुहूर्त शाम 06:27 से लेकर रात को 08: 09 तक

महानिशा काल पूजा मुहूर्त: रात्रि 11:38 से लेकर रात को 12:30  तक

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