दशहरा क्यो मनाया जाता है ? (dussehra kyun manya jata h)


दशहरे के उपलक्ष्‍य में सभी लोग रावण के वध यानी उसके मरने की बात तो करते हैं, लेकिन उसके जीवन के बारे में कोई नहीं पूछता। 'रावण'... दुनिया में इस नाम का दूसरा कोई व्यक्ति नहीं है। राम तो बहुत मिल जाएंगे, लेकिन रावण नहीं। रावण तो सिर्फ रावण है। राजाधिराज लंकाधिपति महाराज रावण को दशानन भी कहते हैं। कहते हैं कि रावण लंका का  तमिल राजा था। सभी ग्रंथों को छोड़कर वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण महाकाव्य में रावण का सबसे 'प्रामाणिक' इतिहास मिलता है। की रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ तत्व ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था। उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता है ।
कैसे हुआ रावण का जन्म आइये जानते है।

 रावण एक ऐसा योगी था जिसके बल से सारा ब्रम्हाण्ड कांपता था। लेकिन क्या कोइ यह जानता है कि वो रावण जिसे राक्षसों का राजा कहा जाता था वो किस कुल की संतान था। रावण के जन्म के पीछे के क्या रहस्य है? इस तथ्य को शायद बहुत कम लोग यह जानते होंगे रावण के पिता विश्वेश्रवा महान ज्ञानी ऋषि पुलस्त्य के पुत्र थे। विश्वेश्रवा भी महान ज्ञानी सन्त थे। ये उस समय की बात है जब देवासुर संग्राम में पराजित होने के बाद सुमाली माल्यवान जैसे राक्षस भगवान विष्णु के भय से रसातल में जा छुपे थे। वर्षों बीत गये लेकिन राक्षसों को देवताओं से जीतने का कोई उपाय नहीं मिल रहा था। एक दिन सुमाली अपनी पुत्री कैकसी के साथ रसातल से बाहर आया, तभी उसने विश्वेश्रवा के पुत्र कुबेर को अपने पिता के पास जाते देखा। सुमाली कुबेर के भय से वापस रसातल में चला आया, लेकिन अब उसे रसातल से बाहर आने का मार्ग मिल चुका था। सुमाली ने अपनी पुत्री कैकसी से कहा कि पुत्री मैं तुम्हारे लिए सुयोग्य वर की तलाश नहीं कर सकता इसलिये उसे स्वयं ऋषि विश्वेश्रवा के पास जाना होगा और उनसे विवाह का प्रस्ताव स्वयं रखना होगा। पिता की आज्ञा के अनुसार कैकसी ऋषि विश्वेश्रवा के आश्रम में पहुंच गई। ऋषि उस समय अपने संध्या वंदन में लीन थे आंखें खोलते ही ट्टषि ने अपने सामने उस सुंदर युवती को देखकर कहा कि वे जानते हैं कि उसके आने का क्या प्रयोजन है? लेकिन वो जिस समय उनके पास आई है वो बेहद दारुण वेला है जिसके कारण ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होने के बाद भी उनके पुत्रा राक्षसी प्रवृत्ति के होंगे। तब कैकसी ऋषि चरणों में गिरकर बोली आप इतने महान तपस्वी हैं तो उनकी संतान ऐसी कैसे हो सकती है आपको संतानों को आशीर्वाद अवश्य ही देना होगा। तब कैकसी कि प्रार्थना पर ऋषि विश्वेश्रवा ने कहा कि उनका सबसे छोटा पुत्र धर्मात्‍मा प्रवृत्ति का होगा। इसके अलावा वे कुछ नही कर सकते। कुछ समय पश्चात् कैकसी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसके दस सिर थे। ऋषि ने दस शीश होने के कारण इस पुत्र का नाम दसग्रीव रखा। इसके बाद कुंभकर्ण का जन्म हुआ जिसका शरीर इतना विशाल था कि संसार मे कोई भी उसके समकक्ष नहीं था । कुंभकर्ण के बाद पुत्री सूर्पणखा और फिर विभीषण का जन्म हुआ। इस तरह दसग्रीव और उसके दोनो भाई और बहन का जन्म हुआ।


चलिये अब आपको हम दशहरा के बारे में बताते है क्यो मनाते है दशहरा?

वैदिक काल से ही भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक और शौर्य की उपासक रही है. हमारी संस्कृति कि गाथा इतनी निराली है कि देश के अलावा विदेशों में भी इसकी गुंज सुनाई पडती है. तभी तो पुरी दुनिया ने भारत को विश्व गुरु मानता है.

भारत के प्रमुख पर्वो में से एक पर्व है दशहरा जिसे विजयादशमी के नाम से भी मनाया जाता है. दशहरा केवल त्योहार ही नही बल्कि इसे कई बातों का प्रतीक भी माना जाता है. इस त्योहार के साथ कई धार्मिक मान्यताएँ व कहानियाँ भी जुड़ी हुई है. लेकिन इस पर्व को पूरे देश-विदेशों में बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाते है. इस पर्व को आश्विन माह की दशमी को देश के कोने-कोने में बड़े जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है. क्योंकि यह त्योहार ही हर्ष, उल्लास और विजय का प्रतीक है.

राम और रावण में घमासान युद्ध चल रहा था राम रावण के शीश काट रहे थे। तब सभी के मन में सवाल था कि आखिर श्री राम रावण के हृदय पर तीर क्यों नहीं चला रहे। देवताओं ने ब्रह्मा जी से यही प्रश्न किया। तब भगवान ब्रह्मा ने कहा कि रावण के हृदय में सीता जी का वास है, सीता  के हृदय में राम वास करते हैं और राम के हृदय में सारी सृष्टि है। ऐसे में यदि श्री राम रावण के हृदय पर तीर चलाते तो सारत सृष्टि नष्ट हो जाएगी। जैसे ही रावण के हृदय से सीता का ध्यान हटेगा वैसे ही श्री राम रावण का संहार करेंगे। इसलिये विभीषण जब रावण के वरदान का रहस्य बताने जब श्री राम के पास पहुंचे तो रावण के हृदय से सीता का ध्यान हट गया। फिर भगवान राम ने आतातायी रावण की नाभि पर तीर चलाकर वध किया। रावण वध का यही दिन दशहरा या विजयादशमी कहलाया।

इस पर्व को भगवती के 'विजया' नाम पर भी 'विजयादशमी' कहते हैं। इस दिन भगवान रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुँचे थे। इसलिए भी इस पर्व को 'विजयादशमी' कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय 'विजय' नामक मुहूर्त होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इसलिए भी इसे विजयादशमी कहते हैं।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Vishnu Ji ke 108 Name || विष्णुजी के 108 नाम

श्री सरस्वती स्तुती - Shri Saraswati Stuti

महाकाल भैरव स्तोत्रम् (Mahakaal Bhairav Stotram)