श्रीकालभैरवाशष्टकाम् (kalabhairavashtakam)
।। अथ श्रीकालभैरवाशष्टकाम् ।।
देव राज सेव्य मान पावनाग्रि पन्कजं, व्याल यज्ञ सुत्र मिण्डु शेखरं कृपाकरं।
नारदाधि योगी वृन्द वन्दितं दिगम्बरं, काशिका पुराधि नाद कालभैरवं भजे॥ १
भानु कोटि भास्वरम्, भवाब्धि तारकं परम्, नीलकण्ठं ईप्सितार्थ दायकं त्रिलोचनम्।
कालकाल मंबुजाक्ष मक्ष शूल मक्षरं, काशिका पुराधि नाद कालभैरवं भजे॥ २
शूल तङ्ग पाश दण्ड पाणि माधि कारणं, श्याम काय माधि देवमक्षरम निरामयं,।
भीम विक्रमं प्रभुं विचित्र ताण्डव प्रियं, काशिका पुराधि नाद कालभैरवं भजे॥ ३
भुक्ति मुक्ति दायकं प्रशस्त चारु विग्रहं, भक्त वत्सलं स्थितं , समस्त लोक विग्रहं,।
विनिक्वनन् मनोज्ञ हेम किङ्किणी लसत कटिं, काशिका पुराधि नाद कालभैरवं भजे॥ ४
धर्म सेतु पालकं , त्व धर्म मार्ग नाशकं , कर्म पाश मोचकं , सुशर्म दायकं विभुं,।
स्वर्ण वर्ण शेष पाश शोभिताङ्ग मण्डलं, काशिका पुराधि नाद कालभैरवं भजे॥ ५
रत्न पादुका प्रभावी राम पाद युग्मकं, नित्यमद्वितीयमिश्ट दैवतं निरञ्जनं,।
मृत्यु दर्प नाशनं करालदंस्त्र मोक्षणम्, काशिका पुराधि नाद कालभैरवं भजे॥ ६
अट्टहास भिन्न पद्म जाण्ड कोष संततीं, दृष्टि पाद नष्ट पाप जालमुग्र शासनं,।
अष्टसिद्धि दायकं कपाल मालिकन्जरं, काशिका पुराधि नाद कालभैरवं भजे॥ ७
भूत संग नायकं, विशाल कीर्ति दायकं, काशी वास लोक पुण्य पाप शोधकं विभुं,।
नीति मार्ग कोविदं पुरातनं जगत्पतिं, काशिका पुराधि नाद कालभैरवं भजे॥ ८
कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं, ज्ञान मुक्ति साधनम , विचित्र पुण्य वर्धनं,।
शोक मोह दैन्य लोप कोप ताप नाशनं, हे प्रयान्ति कालभैरवान्ग्रि सन्निधिं ध्रुवं.॥
।। इति श्रीकालभैरवाशष्टकाम सम्पूर्णम् ।।
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