श्रीबदरीनाथाष्टकम् - Shri Badrinathastakam
॥ श्रीबदरीनाथाष्टकम् ॥
भू-वैकुण्ठ-कृतं वासं देवदेवं जगत्पतिम्।
चतुर्वर्ग-प्रदातारं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ १॥
तापत्रय-हरं साक्षात् शान्ति-पुष्टि-बल-प्रदम्।
परमानन्द-दातारं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ २॥
सद्यः पापक्षयकरं सद्यः कैवल्य-दायकम्।
लोकत्रय-विधातारं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ३॥
भक्त-वाञ्छा-कल्पतरुं करुणारस-विग्रहम्।
भवाब्धि-पार-कर्तारं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ४॥
सर्वदेव-स्तुतं सश्वत् सर्व-तीर्थास्पदं विभुम्।
लीलयोपात्त-वपुषं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ५॥
अनादिनिधनं कालकालं भीमयमच्युतम्।
सर्वाश्चर्यमयं देवं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ६॥
गन्दमादन-कूटस्थं नर-नारायणात्मकम्।
बदरीखण्ड-मध्यस्थं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ७॥
शत्रूदासीन-मित्राणां सर्वज्ञं समदर्शिनम्।
ब्रह्मानन्द-चिदाभासं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ८॥
श्रीबद्रीशाष्टकमिदं यः पटेत् प्रयतः शुचिः।
सर्व-पाप-विनिर्मुक्तः स शान्तिं लभते पराम् ॥ ९॥
॥ ॐ तत्सत्॥
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें