श्री सालासर बालाजी की आरती - Shri Salasar Balaji Ki Aarti


श्री सालासर बालाजी की आरती 

जयति जय जय बजरंग बाला,कृपा कर सालासर वाला | टेक |
चैत सुदी पूनम को जन्मे,अंजनी पवन ख़ुशी मन में |
प्रकट भय सुर वानर तन में,विदित यस विक्रम त्रिभुवन में |
दूध पीवत स्तन मात के,नजर गई नभ ओर |
तब जननी की गोद से पहुंचे,उदयाचल पर भोर |
अरुण फल लखि रवि मुख डाला || कृपा कर० || ||
तिमिर भूमण्डल में छाई,चिबुक पर इन्द्र बज बाए |
तभी से हनुमत कहलाए,द्वय हनुमान नाम पाये |
उस अवसर में रुक गयो,पवन सर्व उन्चास |
इधर हो गयो अन्धकार,उत रुक्यो विश्व को श्वास |
भये ब्रह्मादिक बेहाला || कृपा कर || ||
देव सब आये तुम्हारे आगे,सकल मिल विनय करन लागे |
पवन कू भी लाए सागे,क्रोध सब पवन तना भागे |
सभी देवता वर दियो,अरज करी कर जोड़ |
सुनके सबकी अरज गरज,लखि दिया रवि को छोड़ |
हो गया जगमें उजियाला || कृपा कर || ||
रहे सुग्रीव पास जाई, आ गये बनमें रघुराई |
हरिरावणसीतामाई, विकलफिरतेदोनों भाई |
विप्ररूप धरि राम को, कहा आप सब हाल |
कपि पति से करवाई मित्रता,मार दिया कपि बाल |
दुःख सुग्रीव तना टाला || कृपा कर || ||
आज्ञा ले रघुपति की धाया,लंक में सिन्धु लाँघ आया |
हाल सीता का लख पाया,मुद्रिका दे बनफल खाया |
बन विध्वंस दशकंध सुत,वध कर लंक जलाया |
चूड़ामणि सन्देश त्रिया का,दिया राम को आय |
हुए खुश त्रिभुवन भूपाला || कृपा कर || ||
जोड़ कपि दल रघुवर चाला,कटक हित सिन्धु बांध डाला |
युद्ध रच दीन्हा विकराला,कियो राक्षस कुल पैमाला |
लक्ष्मण को शक्ति लगी,लायौ गिरी उठाय |
देई संजीवन लखन जियाये,रघुवर हर्ष सवाय |
गरब सब रावन का गाला || कृपा कर || ||
रची अहिरावन ने माया,सोवते राम लखन लाया |
बने वहाँ देवी की काया,करने को अपना चित चाया |
अहिरावन रावन हत्यौ,फेर हाथ को हाथ ||
मन्त्र विभीषण पाय आप को |हो गयो लंका नाथ |
खुल गया करमा का ताला || कृपा कर || ||
अयोध्या राम राज्य कीना,आपको दास बना लीना |
अतुल बल घृत सिन्दूर दीना,लसत तन रूप रंग भीना |
चिरंजीव प्रभु ने कियो,जग में दियो पुजाय |
जो कोई निश्चय कर के ध्यावै,ताकी करो सहाय |
कष्ट सब भक्तन का टाला || कृपा कर || ||
भक्तजन चरण कमल सेवे,जात आय सालासर देवे |
ध्वजा नारियल भोग देवे,मनोरथ सिद्धि कर लेवे |
कारज सारो भक्त के,सदा करो कल्यान |
विप्र निवासी लक्ष्मणगढ़ के बालकृष्ण धर ध्यान |

नाम की जपे सदा माला,कृपा कर सालासर || ||

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