छठ क्या है ......? चलिये जानते है। (What is Chhath Puja.....? Let me know)

छठ क्या है ?  और छठ पूजा का क्या महत्व है ? चलिये जानते है।

भारत देश में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ पूजा । मुख्य रूप से इसे सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ पूजा कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है।  पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते हैं।

यह बात तो सभी को पता होगा कि भगवान सूर्य नारायण को हमारे धर्म ग्रंथों में प्रत्यक्ष देवता माना गया है। संसार के हर प्राणी के जीवन स्त्रोत सूर्य हैं. सूर्य के बिना हम इस धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।  सूर्य की साधना से ही आध्यात्मिक ऊर्जा की तलाश पूरी होती है। भगवान सूर्य के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए ही सूर्य षष्ठी व्रत रखा जाता है। इस व्रत छठ माता की पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

सूर्यदेव को शाम को जल और दूध का अर्घ्य समर्पित किया जाता है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संपन्न होने वाला सूर्य-षष्ठी व्रत, छठ उत्तर-भारत सहित देश के दूसरे कई हिस्सों में मनाया जाता है. कहा जाता है की सूर्य को समर्पित ये व्रत सूर्य-साधना का ही स्वरूप है. छठ के अवसर पर भगवान सूर्य के प्रति श्रद्धालुओं की श्रद्धा और खुशी देखते ही बनती है। सच तो ये है कि पूर्व-वैदिक काल में ही सूर्य पूजा के प्रमाण मिलते हैं. वैदिक युग में जिन देवताओं को सर्वाधिक महत्व मिला, उनमें सूर्य, अग्नि और इंद्र मुख्य हैं। सूर्य के बिना अग्नि और इन्द्र का भी महत्व कम हो जाता है।

छठ पूजा कथा इतिहास :

छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं।

रामायण- एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।

महाभारत- एक दूसरी मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी  में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।

पुराण में इस बारे में एक और कथा प्रचलित है। एक अन्य कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियवद की पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर शमशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे।
उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि ‘सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो’। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।


वैज्ञानिक महत्व:

कुछ लोग कहते हैं कि छठ पूजा विज्ञान से भी जुड़ा हैं क्योंकि यह मानव शरीर विषाक्तता से छुटकारा पाने में मदद करता है। पानी में डुबकी लगाना और सूर्य की किरणों में उजागर रहना, सौर बायो-बिजली का प्रवाह बढ़ता है जिससे मानव शरीर की समग्र कार्यक्षमता में सुधार होता है। कुछ लोगों का मानना है कि छठ पूजा शरीर से हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस को खत्म करने में मदद करती है।



छठ पूजा व्रत विधि :

यह पर्व चार दिन का होता हैं | बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता हैं |इसे उत्तर भारत में सबसे बड़ा त्यौहार मानते हैं | इसमे गंगा स्नान का महत्व सबसे अधिक होता हैं |

यह व्रत स्त्री एवम पुरुष दोनों करते हैं | यह चार दिवसीय त्यौहार हैं जिसका माहत्यम कुछ इस प्रकार हैं :

नहाय खाय-: यह पहला दिन होता हैं | यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होता हैं | इस दिन सूर्य उदय के पूर्व पवित्र नदियों का स्नान किया जाता हैं इसके बाद ही भोजन लिया जाता हैं जिसमे कद्दू खाने का महत्व पुराणों में निकलता हैं |

लोहंडा और खरना-: यह दूसरा दिन होता हैं जो कार्तिक शुक्ल की पंचमी कहलाती हैं | इस दिन, दिन भर निराहार रहते हैं | रात्रि में खिरनी खाई जाती हैं और प्रशाद के रूप में सभी को दी जाती हैं | इस दिन आस पड़ौसी एवम रिश्तेदारों को न्यौता दिया जाता हैं |

संध्या अर्घ्य-: यह तीसरा दिन होता हैं जिसे कार्तिक शुक्ल की षष्ठी कहते हैं | इस दिन संध्या में सूर्य पूजा कर ढलते सूर्य को जल चढ़ाया जाता हैं जिसके लिए किसी नदी अथवा तालाब के किनारे जाकर टोकरी एवम सुपड़े में  देने की सामग्री ली जाती हैं एवम समूह में भगवान सूर्य देव को अर्ध्य दिया जाता हैं | इस समय दान का भी महत्व होता हैं | इस दिन घरों में प्रसाद बनाया जाता हैं जिसमे लड्डू का अहम् स्थान होता हैं |

उषा अर्घ्य-: यह अंतिम चौथा दिन होता हैं | यह सप्तमी का दिन होता हैं | इस दिन उगते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता हैं एवम प्रसाद वितरित किया जाता हैं | पूरी विधि स्वच्छता के साथ पूरी की जाती हैं |

यह चार दिवसीय व्रत बहुत कठिन साधना से किया जाता हैं | इसे हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत कहा जाता हैं जो चार दिन तक किया जाता हैं | इसके कई नियम होते हैं :

छठ व्रत के नियम :
  1. इसे घर की महिलायें एवम पुरुष दोनों करते हैं |
  2. इसमें स्वच्छ एवम नए कपड़े पहने जाते हैं जिसमे सिलाई ना हो जैसे महिलायें साड़ी एवम पुरुष धोती पहन सकते हैं |
  3. इन चार दिनों में व्रत करने वाला धरती पर सोता हैं जिसके लिए कम्बल अथवा चटाई का प्रयोग कर सकता हैं |
  4. इन दिनों घर में प्याज लहसन एवम माँस का प्रयोग निषेध माना जाता हैं |
  5. इस त्यौहार पर नदी एवम तालाब  के तट पर मैला लगता हैं | इसमें छठ पूजा के गीत गाये जाते हैं | जहाँ प्रसाद वितरित किया जाता हैं | इस त्यौहार में सूर्य देव को पूजा जाता हैं | इसके आलावा सूर्य पूजा का महत्व इतना अधिक किसी पूजा में नहीं मिलता | इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी हैं , कहते हैं छठी के समय पर धरती पर सूर्य की हानिकारक विकिरण आती हैं | इससे मनुष्य जाति को कोई प्रभाव न पड़े इसलिए नियमो में बाँधकर इस व्रत को संपन्न किया जाता हैं | इससे मनुष्य स्वस्थ रहता हैं | लेख स्रोत।

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