"अहम् ब्रह्मास्मि" ।। Aham Brahmasmi
"अहम् ब्रह्मास्मि" संस्कृत भाषा की एक प्राचीन महावाक्य है,
जिसका अनुवाद है: "मैं ब्रह्म हूँ"।
इसका अर्थ है कि आत्म - या ’मैं '- अनिवार्य रूप से सभी-व्यापक और आदिकालीन आध्यात्मिक बल के समान है, जो कि अनादि काल से अस्तित्व में है और भौतिक दुनिया की मृत्यु के बाद भी मौजूद रहेगा।
यहाँ 'अस्मि' शब्द का तात्पर्य ब्रह्म और जीव की एकता से है। जब कोई जीव परमात्मा का अनुभव कर लेता है, तब वह उसी का रूप हो जाता है।
अहं ब्रह्मास्मि के कई अर्थ है- "मैं ब्रह्म हूँ", "मैं ब्रह्म का अंश हूँ" अर्थात मेरे अन्दर ब्रहमाण्ड की सारी शक्तियाँ है, मैं ही सर्वशक्तिमान हूँ।
वेदचार है: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद
यह शक्तिशाली नारा, अहम् ब्रह्मास्मि, महाकाव्यों में से एक है जो मूल रूप से शुक्ल यजुर्वेद के बृहदारण्यक उपनिषद पाठ में पाया जाता है।
जिसका अनुवाद है: "मैं ब्रह्म हूँ"।
इसका अर्थ है कि आत्म - या ’मैं '- अनिवार्य रूप से सभी-व्यापक और आदिकालीन आध्यात्मिक बल के समान है, जो कि अनादि काल से अस्तित्व में है और भौतिक दुनिया की मृत्यु के बाद भी मौजूद रहेगा।
यहाँ 'अस्मि' शब्द का तात्पर्य ब्रह्म और जीव की एकता से है। जब कोई जीव परमात्मा का अनुभव कर लेता है, तब वह उसी का रूप हो जाता है।
अहं ब्रह्मास्मि के कई अर्थ है- "मैं ब्रह्म हूँ", "मैं ब्रह्म का अंश हूँ" अर्थात मेरे अन्दर ब्रहमाण्ड की सारी शक्तियाँ है, मैं ही सर्वशक्तिमान हूँ।
वेदचार है: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद
यह शक्तिशाली नारा, अहम् ब्रह्मास्मि, महाकाव्यों में से एक है जो मूल रूप से शुक्ल यजुर्वेद के बृहदारण्यक उपनिषद पाठ में पाया जाता है।
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