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श्री शाकुंभारी देवी जी की आरती - Shri Shankubhari Devi Ji Ki Aarti

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श्री शाकुंभारी देवी जी की आरती  हरि ओं शाकुम्भर अम्बा जी , की आरती कीजो ऐसा अदभुत रूप हृदय धर लीजो शताक्षी दयालु की आरती कीजो | तुम परिपूर्ण आदि भवानी मां सब घट तुम आप बखानी मां शाकुम्भर अंबा जी की आरती कीजो तुम्हीं हो शाकुम्भरी , तुम ही हो शताक्षी मां शिव मूर्ति माया तुम ही हो प्रकाशी मां  श्री शाकुम्भर नित जो नर नारी अंबे आरती गावे मां  इच्छा पूरणकीजो , शाकुम्भरी दर्शन पावे मां  श्री शाकुम्भर जो नर आरती पढ़े पढ़ावे माँ जो नर आरती सुने सुनावे माँ बसे बैकुण्ठ शाकुम्भर दर्शन पावे श्री शाकुम्भर

श्री वैष्णों देवी की गुफा में होने वाली आरती - Shri Vaishno Devi Ki Gufa Main Hone Wali Aarti

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श्री वैष्णों देवी की आरती हे मात मेरी , हे मात मेर , कैसी यह देर लगाई है दुर्गे | हे .... भवसागर में गिरा पड़ा हूँ , काम आदि गृह में घिरा पड़ा हूँ | मोह आदि जाल में जकड़ा पड़ा हूँ | हे .... न मुझ में बल है न मुझ में विद्या , न मुझ में भक्ति न मुझमें शक्ति | शरण तुम्हारी गिरा पड़ा हूँ | हे .... न कोई मेरा कुटुम्ब साथी , ना ही मेरा शारीर साथी | आप ही उबारो पकड़ के बाहीं | हे .... चरण कमल की नौका बनाकर , मैं पार हुंगा ख़ुशी मनाकर | यमदूतों को मार भगाकर | हे .... सदा ही तेरे गुणों को गाऊँ , सदा ही तेरे स्वरूप को ध्याऊँ | नित प्रति तेरे गुणों को गाऊँ | हे .... न मैं किसी का न कोई मेरा , छाया है चारों तरफ अन्धेरा | पकड़ के ज्योति दिखा दो रास्ता | हे .... शरण पड़े है हम तुम्हारी , करो यह नैया पार हमारी | कैसी यह देर लगाई है दुर्गे | हे ....

श्री चिन्तपूर्णी देवी जी की आरती - Shri Chintpurni Devi Ji Ki Aarti

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श्री चिन्तपूर्णी देवी जी की आरती चिन्तपूर्णी चिन्ता दूर करनी , जन को तारो भोली माँ | काली दा पुत्र पवन दा घोडा , सिंह पर भई असवार , भोली माँ || १ || एक हाथ खड़ग दूजे में खांडा , तीजे त्रिशूलसम्भालो , भोली माँ || २ || चौथे हथ चक्कर गदा पांचवे , छठे मुण्डों दी माल भोली माँ || ३ || सातवें से रुण्ड-मुण्ड बिदारे , आठवें से असुर संहारे , भोली माँ || ४ || चम्पे का बाग लगा अति सुन्दर , बैठी दीवान लगाय , भोली माँ || ५ || हरि हर ब्रह्मा तेरे भवन विराजे , लाल चंदोया बैठी तान , भोली माँ || ६ || औखी घाटी विकटा पैंडा , तले बहे दरिया , भोली माँ || ७ || सुमर चरन ध्यानू जस गावे , भक्तां दी पज निभाओ , भोली माँ || ८ ||

श्री संणु जी की आरती - Shri Sandu Ji Ki Aarti

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श्री संणु जी की आरती धूप दीप घुत साजि आरती | वारने जाउ कमलापति || 1   || मंगलाहरि मंगला | नित मंगल राजा राम राई को || 2  || रहउ०उत्तम दियरा निरमल बाती | तुही निरंजन कमला पाती  || 3  || रामा भगति रामानंदु जानै | पूरन परमानन्द बखानै  || 4  || मदन मूरति भै तारि गोबिन्दे | सैणु भणै भजु परमानन्दे  || 5  ||

श्री केदारनाथ जी की आरती - Shri Kedarnath Ji Ki Aarti

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श्री केदारनाथ जी की आरती जय केदार उदार शंकर , मन भयंकर दुःख हरम | गौरी गणपति स्कन्द नन्दी , श्री केदार नमाम्यहम् | शैल सुन्दर अति हिमालय , शुभ मन्दिर सुन्दरम | निकट मन्दाकिनी सरस्वती , जय केदार नमाम्यहम | उदक कुण्ड है अधम पावन , रेतस कुण्ड मनोहरम | हंस कुण्ड समीप सुन्दर , जय केदार नमाम्यहम | अन्नपूरणा सह अर्पणा , काल भैरव शोभितम | पंच पाण्डव द्रोपदी सह , जय केदार नमाम्यहम | शिव दिगम्बर भस्मधारी , अर्द्ध चन्द्र विभूषितम | शीश गंगा कण्ठ फिणिपति , जय केदार नमाम्यहम | कर त्रिशूल विशाल डमरू , ज्ञान गान विशारदम | मझहेश्वर तुंग ईश्वर , रुद कल्प महेश्वरम | पंच धन्य विशाल आलय , जय केदार नमाम्यहम | नाथ पावन हे विशालम | पुण्यप्रद हर दर्शनम | जय केदार उदार शंकर , पाप ताप नमाम्यहम ||

श्री जुगलकिशोर जी की आरती - Shri Jugalkishor Ji Ki

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श्री जुगलकिशोर जी की आरती आरती जुगलकिशोर कि कीजै | तन मन धन न्यौछावर कीजै | रवि शशि कोटि बदन कि शोभा | ताहि निरखि मेरी मन लोभा | गौर श्याम मुख निखरत रीझै | प्रभु को स्वरूप नयन भरि पीजै | कंचन थार कपूर की बाती | हरि आए निर्मल भई छाती | फूलन की सेज फूलन की माला | रतन सिंहासन बैठे नन्दलाला | मोर मुकुट कर मुरली सोहे | नटवर वेष देखि मन मोहे | ओढ़यो नील-पीत पटसारी , कुंज बिहारी गिरवरधारी | आरती करत सकल ब्रजनारी | नन्दनन्दन वृषभानु किशोरी | परमानन्द स्वामी अविचल जोड़ी | आरती जुगल किशोर की कीजै |

श्री भैरव जी की आरती - Shri Bhairav Ji Ki Aarti

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श्री भैरव जी की आरती जय भैरव देवा प्रभु जय भैरव देवा | जय काली और गौरा कृतसेवा || तुम पापी उद्धारक दुख सिन्धु तारक | भक्तों के सुखकारक भीषण वपु धारक | वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी | महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी | तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे | चतुर्वतिका दीपक दर्शन दुःख खोवे | तेल चटकी दधि मिश्रित माषवली तेरी | कृपा कीजिये भैरव करिये नहीं देरी | पाँवों घुंघरू बाजत डमरू डमकावत | बटुकनाथ बन बालक जन मन हरषवत | बटुकनाथ की आरती जो कोई जन गावे | कहे ' धरणीधर ' वह नर मन वांछित फल पावे |