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Namami Shamishan

Namami shamishan nirvan roopam Vibhum vyapakam brahma veda swaroopam, Nijam nirgunam nirvikalpam nireeham Chidakasamaakasa vasam bhajeham.. Niraakara monkaara moolam thureeyam Giraa jnana gotheethamesam gireesam, Karalam maha kala kalam krupalam Gunaa gara samsara param nathoham... Thushaaraadhi sankasa gowram gabheeram, Mano bhootha koti prabha sree sareeram, Sphuran mouli kallolini charu ganga, Lasaddala balendu kante bhujanga... Chalath kundalam bru sunethram vishaalam, Prasannananam neela kandam dhayalam, Mugadheesa charmambaeam munda malam, Priyam shankaram sarva nadham bhajami... Prachandam prakrushtam prakalbham paresam, Akhandam ajam bhanu koti prakasam, Thraya soola nirmoolanam soola panim, Bhajeham bhavani pathim bhava gamyam... Kalatheetha kalyani kalpanthakari, Sada sajjananda datha purari, Chidananda sandoha mohapahari, Praseeda praseeda prabho mamamadhari... Na yavad umanada padaravindam, Bhajantheeha loke

होली क्यों मनायी जाती है ?

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होली क्यों मनाते हैं? होली एक ‘रंगों का त्यौहार’ ​है हिंदू कैलेंडर के अनुसार, होली महोत्सव फाल्गुन पूर्णिमा में मार्च (या कभी कभी फरवरी के महीने में) के महीने में वार्षिक आधार पर मनाया जाता है। तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह लोगो के बीच एकता और प्यार लाता है। इसे "प्यार का त्यौहार" भी कहा जाता है। यह एक पारंपरिक और सांस्कृतिक हिंदू त्यौहार है, जो प्राचीन समय से पुरानी पीढियों द्वारा मनाया जाता रहा है और प्रत्येक वर्ष नयी पीढी द्वारा इसका अनुकरण किया जा रहा है। पौराणिक कथा के अनुसार होली से हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है। क्या है होली का इतिहास चलिए आपको बताते है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था जो कि राक्षस जाती का था। वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए ताकत पाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की। आखिरकार उसे वरदान मिला। लेकिन इससे हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से ख

Maha Shivaratri (महाशिवरात्रि क्या है)

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महाशिवरात्रि क्या है इसका क्या महत्व है चलिए जानते है। महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे हर साल  फाल्गुन माह में 13वीं रात या 14वें दिन मनाया जाता हैै। इस त्योहार में श्रद्धालु पूरी रात जागकर भगवान शिव की आराधना में भजन गाते हैं। कुछ लोग पूरे दिन और रात उपवास भी करते हैं। शिव लिंग को पानी और बेलपत्र चढ़ाने के बाद ही वे अपना उपवास तोड़ते हैं। माना जाता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान मानवजाति के काफी निकट आ जाते है। मध्यरात्रि के समय ईश्वर मनुष्य के सबसे ज्यदा निकट होते है। यही करण है कि लोग शिवरात्रि के दिन रातभर जागते है महिलाओं के लिए शिवरात्रि का विशेष महत्व क्या है। अविवाहित महिलाएं भगवान शिव से प्रार्थना करती हैं कि उन्हें उनके जैसा ही पति मिले। वहीं विवाहित महिलाएं अपने पति और परिवार के लिए मंगल कामना करती है। ऐसा माना जाता है। जब कोई महिला भगवान शिव से प्रार्थना करती है तो भगवान शिव उनकी प्रार्थना को आसानी से स्वीकार कर लेते है। भगवान शिव की पूजा में किसी विशेष सामग्री की जरूरत नहीं पड़ती है। सिर्फ पानी और बेलपत्र के जरिए भी श्रद्

शांति पाठ मंत्र (Shanti Path Mantra)

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शांति पाठ मंत्र ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,  पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।  वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,  सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥  ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥ भवार्थ—   शान्ति: कीजिये, प्रभु त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में  अन्तरिक्ष में, अग्नि पवन में, औषधि, वनस्पति, वन, उपवन में  सकल विश्व में अवचेतन में!  शान्ति राष्ट्र-निर्माण सृजन में, नगर, ग्राम में और भवन में  जीवमात्र के तन में, मन में और जगत के हो कण कण में  ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

भगवान शिव के विचित्र प्रतीक चिन्ह और उनका रहस्य चलिए जानते है (Let us know his secret symbol of Lord Shiva is bizarre)

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पराणादि शास्त्रों एवं देवालयों में भगवान शिव का मखमण्डल एवं बाह्म स्वरूप अत्यन्त सुन्दर, मनोहारी, प्रशान्त दिव्य—तेजमय, पूर्णानन्दमय एवं कल्याणमय वर्णित किया गया हैं। उन्होंने अभयमुद्रा धारण की हुई हैं तथा उनके मुाखरिन्द पर मन्द—मन्द मुस्कान की छटा छाई रहती है। भगवान शिव के सौम्य एवं प्रशान्त स्वरूप उनके विराट् व्यक्तित्व के साथ अनेक रहस्यपूर्ण एवं आश्चर्यमय पदार्थों का समावेश परिलक्षित होता है। जैसे रूद्राण किए हैं। उनकी सवारी वृषभ है और शिव कमण्डलू व भिक्षा पात्रादि ग्रहण किए हैं। जटाओं में गंगा धारण किए हुए तथा कण्ठ में कालकूट का विष, जहरीले सॉंप एवं समस्त शरीर अंगों पर भस्म धारण किए रहते हैं। भागवान शिव के अंग—संग र​हने वाली देवी पार्वती, गण, देव एवं अन्य विभिन्न ​वस्तुएं किसी न किसी महान् संदेश या उद्देश्य या प्रतीकात्मक रूप को लक्षित करते हैं। भगवान् शिव का चिन्मय आदि स्वरूप शिवलिंग माना गया है, जबकि प्रकृति रूपा पार्वती शिवलिंग की पीठाधार है—     पठिमम्बामयं सर्व शिवलिंग च चिन्मयम्।। ब्रह्मण्ड की आकृति भी शिवलिंग ​रूप है। शिवलिंग पूजा में शिव और शिक्ति दोनों की पूजा हो

भगवान् विष्णु के जपनीय मन्त्र (Lord Vishnu mantra Jpaniy)

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भगवान विष्णु जी त्रिदेवों में से एक हैं। विष्णु जी को सृष्टि का संचालक कहा जाता हैं। विष्णु की पत्नी लक्ष्मी है। विष्णु जी क्षीर सागर में विराजमान रहते हैं। यह अपने भक्तों पर विशेष कृपा दृष्टि बनाए रखते है और उन्हें शुभ फल प्रदान करते हैं। भगवान् विष्णु के जपनीय मन्त्र भगवान विष्णु एवं किसी भी देवी—देवता के मन्त्र का जाप करने से पूर्व शास्त्रीय नियमानुसार विनियोग, ह्रदयादि न्यास, करन्यास, षोडशोपचार पूजन, प्राणायाम, ध्यानादि प्रक्रियाएॅं करना आवश्यक मना गया है। जपोपरान्त भगवान् विष्णु के प्रसिद्ध स्तोत्र 'विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र' का पाठ करने का विधान है। इसके अतिरिक्त भगवान सम्बन्धी अन्य स्तोत्रों का पाठ भी कर श्रद्धानुसार किया जा सकता है। जैसे कुछ स्तोत्र इस प्रकार है— नृसिंह स्तोत्र, संकटनाशन स्तोत्र, श्रीनारायण स्तोत्र, नारायण  कवच, नारायणाष्टक, पापप्रशमन विष्णु स्तोत्र, गजेन्द्रमोक्ष स्तोत्र, कमलेनत्र स्तोत्र, श्रीविष्णो अष्टविशति नाम स्तोत्र, हरिहर स्तोत्र। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए। ॐ नमो: नारायण ।। ॐ नमोः नारायणाय ।। ॐ नमो

भगवान का दिव्यास्त्र—त्रिशूल क्या है? इसका रहस्य चलिए जानते है ?(God Diwyastr-Trident)

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भगवान का दिव्यास्त्र—त्रिशूल भगवान् शिव—त्रिशूल, पिनाक, पाशुपतादि अस्त्र करने वाले हैं। त्रिाशुल भी शक्ति का प्रतीक है। त्रिशूल द्वारा भगवान शिव आसुरी शक्तियों का विनाश करते हैं। शूलत्रयं संवितरन् दुरात्मने त्रिशूलधारिन् नियमेन शोभ से ।। (शैव. सं.) त्रिशूल तिनों प्रकार के शूलों (तापों) आधिभौतिक  एवं आध्यात्मिक तापों का नाश करने वाला भी माना जाता है। शस्त्रादि से चोट लगना, सवारी आदि दुर्घटनाग्रस्त होना, ऊॅंचाई से गिरना, विषादि से मरना आधिाभौतिक ताप हैं। बाढ़, अग्नि, भूकम्प, अनावृष्टि, अतिवर्षा आदि आध्यात्मिक ताप कहलाते हैं। त्रिशूल साक्षी है कि भगवान शिव की पूजार्चना से साधक के तीनों ताप नष्ट होकार उसकी मानसिक, शारीरिक एवं आत्मिक शक्तियों का विकास होता है तथा काम, क्रोध, लोभादि राक्षसी वृत्तियों का नाश होता है। जब साधक भगवान् शिव की भक्ति के प्रभावस्वरूप परमात्मभाव में स्थित होता है, तो ीिनों ताप साधक को कुछ भी कष्ट नहीं दे सकते। वह निर्लेप ​भाव में चिदानन्द स्वरूप में स्थित रहता है। शिवपुराणानुसार त्रिशूल सत्व, रज और तम—तीनों गुणों का भी प्रतीक है। त्रिलोचन भगवान शिव की भक्ति