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सुख-शांति पाने के लिए यह उपाय आजमाएं

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भगवान् ये नही कहते की मेरी पूजा अराधना हर वक़्त करो परन्तु उन्हें याद करना और उन की वन्दना करना एक पुत्र होने ने नाते हमारा परम कर्त्तव्य है ।  सुख-शांति पाने के लिए यह   मंत्र - "  गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देह समुद्भवान्। जन्ममृत्युजराहु: खैर्विमुक्तोकमृतमश्रुते ।।  " श्रीमद्भागवत गीता के 14वें अध्याय का यह श्लोक मानसिक अशांति एवं क्रोध को नष्ट करने का उत्तम उपाय है। इस श्लोक का प्रतिदिन प्रात: या सांय काल जब उचित वक़्त मिले तब उच्चारण करने से इन दोषों का निवारण होता है।  पुराणों में ये लिखा है की इस मंत्र का कम से कम 21 बार जाप करना चाहिए। एक 101 बार "  ओम कृष्णाय नम:  " का जाप करें। धर्मशास्त्रीय दृष्टि से जाप के दिन लहसुन, शराब व मांस का सेवन पूर्णत: वर्जित है।  प्रवृत्ति  वाले पुरुषों को यह जाप कृष्ण मंदिर या पीपल या वटवृक्ष के नीचे करना चाहिए और गुरुवार को पीले वस्त्र व  धारण करने चाहिए  रविवार को बैगनी वस्त्र धारण करने चाहिए। बुजुर्ग  व  बीमार  लोगों को शनिवार को इस श्लोक के जाप के पश्चात अपने हाथों से काले तिल, तेल

जाने जनेऊ का महत्व और क्यों पहनते हैं जनेऊ... ( How to wear Janeu..)

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जाने जनेऊ का महत्व क्यों पहनते हैं जनेऊ ************ जनेऊ क्या है, और इसकी क्या महत्वता है ? / How to wear Janeu. ********** ************** जनेऊ क्या है : *****  आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। इस धागे को जनेऊ कहते हैं। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। जनेऊ को संस्कृत भाषा में ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है। यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे। तीन सूत्र क्यों : ****  जनेऊ में मुख्‍यरूप से तीन धागे होते हैं। यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और  यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है। यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है।यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है। नौ तार : ***  यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाक

जनेऊ धारण करने की परंपरा.... Janeu

जनेऊ धारण करने का महत्व क्या है? जनेऊ धारण करने की परंपरा बहुत ही प्राचीन है। उपनयन' का अर्थ है, 'पास या सन्निकट ले जाना।' किसके पास? ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना। हिन्दू धर्म के 24 संस्कारों में से एक 'उपनयन संस्कार' के अंतर्गत ही जनेऊ पहनी जाती है, जिसे 'यज्ञोपवीत संस्कार' भी कहा जाता है। मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं। यज्ञोपवीत धारण करने वाले व्यक्ति को सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। एक बार जनेऊ धारण करने के बाद मनुष्य इसे उतार नहीं सकता। मैला होने पर उतारने के बाद तुरंत ही दूसरा जनेऊ धारण करना पड़ता है।  हिन्दू धर्म में प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। हर हिन्दू जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे। इसके बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म। एक धागा तीन धागों से मिलकर बनता है। इस प्रकार शरीर पर नौ धागे धारण किए जाते हैं। हर धागे का एक गुण होता है। जनेऊ में मुख्‍यरूप से तीन धागे हो

Namami Shamishan

Namami shamishan nirvan roopam Vibhum vyapakam brahma veda swaroopam, Nijam nirgunam nirvikalpam nireeham Chidakasamaakasa vasam bhajeham.. Niraakara monkaara moolam thureeyam Giraa jnana gotheethamesam gireesam, Karalam maha kala kalam krupalam Gunaa gara samsara param nathoham... Thushaaraadhi sankasa gowram gabheeram, Mano bhootha koti prabha sree sareeram, Sphuran mouli kallolini charu ganga, Lasaddala balendu kante bhujanga... Chalath kundalam bru sunethram vishaalam, Prasannananam neela kandam dhayalam, Mugadheesa charmambaeam munda malam, Priyam shankaram sarva nadham bhajami... Prachandam prakrushtam prakalbham paresam, Akhandam ajam bhanu koti prakasam, Thraya soola nirmoolanam soola panim, Bhajeham bhavani pathim bhava gamyam... Kalatheetha kalyani kalpanthakari, Sada sajjananda datha purari, Chidananda sandoha mohapahari, Praseeda praseeda prabho mamamadhari... Na yavad umanada padaravindam, Bhajantheeha loke

होली क्यों मनायी जाती है ?

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होली क्यों मनाते हैं? होली एक ‘रंगों का त्यौहार’ ​है हिंदू कैलेंडर के अनुसार, होली महोत्सव फाल्गुन पूर्णिमा में मार्च (या कभी कभी फरवरी के महीने में) के महीने में वार्षिक आधार पर मनाया जाता है। तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह लोगो के बीच एकता और प्यार लाता है। इसे "प्यार का त्यौहार" भी कहा जाता है। यह एक पारंपरिक और सांस्कृतिक हिंदू त्यौहार है, जो प्राचीन समय से पुरानी पीढियों द्वारा मनाया जाता रहा है और प्रत्येक वर्ष नयी पीढी द्वारा इसका अनुकरण किया जा रहा है। पौराणिक कथा के अनुसार होली से हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है। क्या है होली का इतिहास चलिए आपको बताते है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था जो कि राक्षस जाती का था। वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए ताकत पाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की। आखिरकार उसे वरदान मिला। लेकिन इससे हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से ख

Maha Shivaratri (महाशिवरात्रि क्या है)

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महाशिवरात्रि क्या है इसका क्या महत्व है चलिए जानते है। महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे हर साल  फाल्गुन माह में 13वीं रात या 14वें दिन मनाया जाता हैै। इस त्योहार में श्रद्धालु पूरी रात जागकर भगवान शिव की आराधना में भजन गाते हैं। कुछ लोग पूरे दिन और रात उपवास भी करते हैं। शिव लिंग को पानी और बेलपत्र चढ़ाने के बाद ही वे अपना उपवास तोड़ते हैं। माना जाता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान मानवजाति के काफी निकट आ जाते है। मध्यरात्रि के समय ईश्वर मनुष्य के सबसे ज्यदा निकट होते है। यही करण है कि लोग शिवरात्रि के दिन रातभर जागते है महिलाओं के लिए शिवरात्रि का विशेष महत्व क्या है। अविवाहित महिलाएं भगवान शिव से प्रार्थना करती हैं कि उन्हें उनके जैसा ही पति मिले। वहीं विवाहित महिलाएं अपने पति और परिवार के लिए मंगल कामना करती है। ऐसा माना जाता है। जब कोई महिला भगवान शिव से प्रार्थना करती है तो भगवान शिव उनकी प्रार्थना को आसानी से स्वीकार कर लेते है। भगवान शिव की पूजा में किसी विशेष सामग्री की जरूरत नहीं पड़ती है। सिर्फ पानी और बेलपत्र के जरिए भी श्रद्

शांति पाठ मंत्र (Shanti Path Mantra)

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शांति पाठ मंत्र ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,  पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।  वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,  सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥  ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥ भवार्थ—   शान्ति: कीजिये, प्रभु त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में  अन्तरिक्ष में, अग्नि पवन में, औषधि, वनस्पति, वन, उपवन में  सकल विश्व में अवचेतन में!  शान्ति राष्ट्र-निर्माण सृजन में, नगर, ग्राम में और भवन में  जीवमात्र के तन में, मन में और जगत के हो कण कण में  ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥