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नवंबर, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भगवान् विष्णु के जपनीय मन्त्र (Lord Vishnu mantra Jpaniy)

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भगवान विष्णु जी त्रिदेवों में से एक हैं। विष्णु जी को सृष्टि का संचालक कहा जाता हैं। विष्णु की पत्नी लक्ष्मी है। विष्णु जी क्षीर सागर में विराजमान रहते हैं। यह अपने भक्तों पर विशेष कृपा दृष्टि बनाए रखते है और उन्हें शुभ फल प्रदान करते हैं। भगवान् विष्णु के जपनीय मन्त्र भगवान विष्णु एवं किसी भी देवी—देवता के मन्त्र का जाप करने से पूर्व शास्त्रीय नियमानुसार विनियोग, ह्रदयादि न्यास, करन्यास, षोडशोपचार पूजन, प्राणायाम, ध्यानादि प्रक्रियाएॅं करना आवश्यक मना गया है। जपोपरान्त भगवान् विष्णु के प्रसिद्ध स्तोत्र 'विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र' का पाठ करने का विधान है। इसके अतिरिक्त भगवान सम्बन्धी अन्य स्तोत्रों का पाठ भी कर श्रद्धानुसार किया जा सकता है। जैसे कुछ स्तोत्र इस प्रकार है— नृसिंह स्तोत्र, संकटनाशन स्तोत्र, श्रीनारायण स्तोत्र, नारायण  कवच, नारायणाष्टक, पापप्रशमन विष्णु स्तोत्र, गजेन्द्रमोक्ष स्तोत्र, कमलेनत्र स्तोत्र, श्रीविष्णो अष्टविशति नाम स्तोत्र, हरिहर स्तोत्र। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए। ॐ नमो: नारायण ।। ॐ नमोः नारायणाय ।। ॐ नमो

भगवान का दिव्यास्त्र—त्रिशूल क्या है? इसका रहस्य चलिए जानते है ?(God Diwyastr-Trident)

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भगवान का दिव्यास्त्र—त्रिशूल भगवान् शिव—त्रिशूल, पिनाक, पाशुपतादि अस्त्र करने वाले हैं। त्रिाशुल भी शक्ति का प्रतीक है। त्रिशूल द्वारा भगवान शिव आसुरी शक्तियों का विनाश करते हैं। शूलत्रयं संवितरन् दुरात्मने त्रिशूलधारिन् नियमेन शोभ से ।। (शैव. सं.) त्रिशूल तिनों प्रकार के शूलों (तापों) आधिभौतिक  एवं आध्यात्मिक तापों का नाश करने वाला भी माना जाता है। शस्त्रादि से चोट लगना, सवारी आदि दुर्घटनाग्रस्त होना, ऊॅंचाई से गिरना, विषादि से मरना आधिाभौतिक ताप हैं। बाढ़, अग्नि, भूकम्प, अनावृष्टि, अतिवर्षा आदि आध्यात्मिक ताप कहलाते हैं। त्रिशूल साक्षी है कि भगवान शिव की पूजार्चना से साधक के तीनों ताप नष्ट होकार उसकी मानसिक, शारीरिक एवं आत्मिक शक्तियों का विकास होता है तथा काम, क्रोध, लोभादि राक्षसी वृत्तियों का नाश होता है। जब साधक भगवान् शिव की भक्ति के प्रभावस्वरूप परमात्मभाव में स्थित होता है, तो ीिनों ताप साधक को कुछ भी कष्ट नहीं दे सकते। वह निर्लेप ​भाव में चिदानन्द स्वरूप में स्थित रहता है। शिवपुराणानुसार त्रिशूल सत्व, रज और तम—तीनों गुणों का भी प्रतीक है। त्रिलोचन भगवान शिव की भक्ति

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् (Mritasanjeevani Stotram)

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मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् एवमारध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयमेश्वरं । मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा ॥१॥ भावार्थ— गौरीपति मृत्युञ्जयेश्र्वर भगवान् शंकरकी विधिपूर्वक आराधना करनेके पश्र्चात भक्तको सदा मृतसञ्जीवन नामक कवचका सुस्पष्ट पाठ करना चाहिये ॥१॥ सारात् सारतरं पुण्यं गुह्याद्गुह्यतरं शुभं ।  महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकं ॥ २॥ भावार्थ— महादेव भगवान् शङ्करका यह मृतसञ्जीवन नामक कवचका तत्त्वका भी तत्त्व है, पुण्यप्रद है गुह्य और मङ्गल प्रदान करनेवाला है ॥२॥ समाहितमना भूत्वा शृणुष्व कवचं शुभं ।  शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ॥३॥ भावार्थ— आचार्य शिष्यको उपदेश करते हैं कि – हे वत्स! ] अपने मनको एकाग्र करके इस मृतसञ्जीवन कवचको सुनो । यह परम कल्याणकारी दिव्य कवच है । इसकी गोपनीयता सदा बनाये रखना ॥३॥ वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवितः ।  मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा ॥४॥ भावार्थ— जरासे अभय करनेवाले, निरन्तर यज्ञ करनेवाले, सभी देवतओंसे आराधित हे मृत्युञ्जय महादेव ! आप पर्व-दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥४॥ दधाअनः शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्

छठ क्या है ......? चलिये जानते है। (What is Chhath Puja.....? Let me know)

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छठ क्या है  ?   और छठ पूजा का  क्या  महत्व  है  ? चलिये जानते है। भारत देश में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ पूजा । मुख्य रूप से इसे सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ पूजा कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है।  पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते हैं। यह बात तो सभी को पता होगा कि भगवान सूर्य नारायण को हमारे धर्म ग्रंथों में प्रत्यक्ष देवता माना गया है। संसार के हर प्राणी के जीवन स्त्रोत सूर्य हैं. सूर्य के बिना हम इस धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।  सूर्य की साधना से ही आध्यात्मिक ऊर्जा की तलाश पूरी होती है। भगवान सूर्य के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए ही सूर्य षष्ठी व्रत रखा जाता है। इस व्रत छठ माता की पूजा के नाम से भी जाना जाता है। सूर्यदेव को शाम को जल और दूध का अर्घ्य समर

भगवान् शिव की जटाओं में गंगा रहस्य (Secrets of Shiva Ganga in dreadlocks)

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देव नदी गंगा का जल शारीरिक एवं मानसिक क्लेशों को दूर करने वाला है। गंगा वस्तुत: लोकमाता एवं विश्वपावनी है। गंगा के आश्रय से मानव भौतिक उन्नति ही नहीं, अपितु आध्यात्मिक पीयूष को भी ग्रहण करता है। इसके दर्शन, स्मरण, पान एवं स्नान से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते है। भगवान शंकर की जटाओं में चन्द्रमणियों की भान्ति सुशोभित होने वाली मां गंगा का सम्बन्ध ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों से माना गया है। वह पहले ब्रह्मा जी के कम्मलु मे समाई रहीं, फिर भगवान् विष्णु के चरणोदक रूप से प्रवाहित हुई और तदनन्तर महादेव जी की जटाओं में सुशोभि हुई। वाल्मीकि रामायण में गंगा को त्रिपथगा एवं त्रिपथगामिनी कहा गया है। अर्थात् पहिले यह आकाश मार्ग में गईं थीं, उसके बाद देवलोक में गईं, ​फिर जल रूप में भूतल पर पहुॅंंची। भगवान् विष्णु के तीन पाद (पृथ्वी, अन्तरिक्ष और भूलोक) की भान्ति मॉं गंगा का क्षेत्र भी तीन लोक हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार गंगाा की उत्पत्ति हिमालय पत्नी मैना से बतायी गयी है। गंगा उमा से ज्येष्ठ थीं। पूर्वजों के उद्धार के लिए भागीरथ ने अत्यधिक कठोर तप किया। ब्रह्मा जी भगीरथ की तपस्या स